प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि बच्चे का भविष्य मां के हाथों में ही सर्वाधिक सुरक्षित होता है। यह सबसे प्रबल प्रकल्पना है। टिप्पणियों से यह माना भी जाता रहा है कि बच्चा पिता अथवा परिस्थिति अनुसार किसी अन्य विभागों की तुलना में अपनी मां के पास ही सर्वाधिक सुरक्षित होता है। इस अनुभव को ध्यान में रखते हुए हिंदू अल्पसंख्यक एवं अभिभावक अधिनियम की 6(ए) ने 5 साल तक के बच्चों की अभिरक्षा का अधिक मां के पास सुरक्षित रखा गया है।
गाजियाबाद की प्रीति राय की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका स्वीकार करते हुए न्यायमूर्ति जेजे मुनीर ने याचिका के अधिवक्ता विभु राय और अनुभव गौड़वकीलों को सुनाने के बाद यह निर्णय सुनाया। याची प्रीति राय पेश से आईटी इंजीनियर हैं। उसने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दाखिल कर अपने साडे 3 साल की बेटे अद्वैत की अभिरक्षा दिलाने की मांग की। अद्वैत अपने पिता प्रशांत शर्मा व दादा-दादी के पास रह रहा है। प्रशांत के वकीलों ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि बच्चे की अभिरक्षा के विवाद में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका और पोषणीय नहीं है क्योंकि यहां माता-पिता दोनों में से किसी की भी अभिरक्षा को अवैध नहीं कहा जा सकता है। याची के पास गार्डियन एंड एक्ट धारा 25 के तहत सक्षम क्षेत्राधिकार वाले न्यायालय में अभिरक्षा का विवाद ले जाने का विकल्प मौजूद है। बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका इसके लिए उचित उपहार नहीं है।