लखनऊ: उत्तर प्रदेश शिक्षा सेवा आयोग के गठन के लिए राज्य सरकार विधानमंडल के बजट सत्र में नया विधेयक ला सकती है। आयोग के गठन में रुकावट बन रहे विभिन्न मुद्दों को सुलझाने के लिए शासन स्तर पर विभागों के बीच सहमति बन चुकी है। क्या हुआ है कि बेसिक और उच्च शिक्षा से जुड़े शिक्षकों को उनकी सेवा नियमावली/परी नियमावली के अनुसार दंडित करने की मौजूदा व्यवस्था बरकरार रहेगी। माध्यमिक शिक्षकों को अनुशासनिक कार्रवाई के फल स्वरुप दंडित करने के लिए आयोग की पूर्व अनुमति जरूरी होगी वरना उनका प्रभाव सोनी माना जाएगा।
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश शिक्षा सेवा आयोग स्थापना के लिए सरकार ने वर्ष 2019 में विधेयक पारित कराया था लेकिन अधिसूचना जारी ना होने से इसका गठन नहीं हो सका। पुराने विधेयक में बेसिक माध्यमिक व उच्च शिक्षा से जुड़े शिक्षकों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई के लिए आयोग की पूर्व अनुमति जरूरी थी।
आयोग के गठन में भी आ रहे गतिरोध को दूर करने के लिए पिछले हफ्ते उपमुख्यमंत्री डॉक्टर दिनेश शर्मा की अध्यक्षता में अंतर विभागीय बैठक हुई थी। बैठक में सहमति बनी कि उत्तर प्रदेश शिक्षा सेवा आयोग परिषदीय प्राथमिक स्कूलों के सहायक अध्यापकों व प्रधानाध्यापक को सहायता प्राप्त जूनियर हाईस्कूल के शिक्षकों व प्रधानाध्यापकों, राजकीय हाई स्कूल की एलटी ग्रेड शिक्षकों व प्रधानाध्यापकों, राजकीय इंटर कॉलेज के प्रवक्ताओं, अशासकीय सहायता प्राप्त,माध्यमिक विद्यालयों की एलटी ग्रेड शिक्षकों, प्रवक्ताओं, प्रधानाध्यापकों/प्रधानाचार्य सहायता प्राप्त डिग्री कालेजों के प्रवक्ता हुआ प्रचार यों का चयन करेगा.। इस पर भी सहमति बनी कि शिक्षण संस्थानों की शिक्षणेत्तर कर्मचारियों ( लिपिका आदि ) का चयन आयोग से कराने की बजाय अधीनस्थ सेवा चयन आयोग से कराया जाए।
आयोग की संरचना में भी बदलाव प्रस्तावित है। आयोग में एक अध्यक्ष के अलावा 10 सदस्यों होंगे। अध्यक्ष पद के योग्य कोई रिटायर या सेवक प्रोफेसर/ कुलपति हो सकता है जिसे 3 वर्ष का प्रशासनिक अनुभव हो या प्रमुख सचिव स्तर का अधिकारी रहा हो। 10 सदस्यों में 6 शिक्षाविद् होंगे एक सचिव स्तर का अधिकारी तथा बेसिक माध्यमिक व उच्च शिक्षा विभाग के संयुक्त निदेशक या इससे उच्च स्तर के एक-एक अधिकारी होंगे। पुरानी विधेयक में आयोग में अध्यक्ष के अलावा सदस्यों का प्रावधान था।