प्रयागराज:उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (यूपीपीएससी) की भर्ती परीक्षाओं की जांच कर रही सीबीआई भर्तियों में धांधली के लिए जिम्मेदार आयोग के कर्मचारियों को चिह्नित कर चुकी है। सीबीआई ने उनके खिलाफ अभियोजन स्वीकृति के लिए शासन को पत्र भी भेजा था, लेकिन आयोग में पत्र पहुंचने के बाद बैरंग लौटा दिया गया और दागियों पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं की जा सकी। प्रतियोगी छात्र दागियों पर कार्रवाई के लिए अड़े हैं और उन्होंने आयोग के नए अध्यक्ष को ज्ञापन प्रेषित करते हुए सीबीआई के पत्र के आधार पर अभियोजन की स्वीकृति देने की मांग की है।आयोग की भर्ती परीक्षाओं की सीबीआई जांच शुरू हुए तकरीबन साढ़े तीन वर्ष पूरे हो चुके हैं, लेकिन अब तक किसी के खिलाफ कोई सीधी कार्रवाई नहीं की गई। 20 जुलाई 2017 को मुख्यमंत्री ने यूपीपीएससी की भर्ती परीक्षाओं की जांच कराने की घोषणा की थी। 31 जुलाई 2017 को इस संबंध में केंद्र सरकार को सिफारिश भेजी गई और 21 नवंबर को केंद्र सरकार के कार्मिक एवं पेंशन मंत्रालय ने सीबीआई जांच की अधिसूचना जारी कर दी थी। सीबीआई ने पांच मई 2018 को पीसीएस-2015 में धांधली के मामले में पहला मुकदमा दर्ज किया। यह मुकदमा आयोग के अज्ञात अफसरों एवं बाहरी अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज किया गया।मुकदमा दर्ज करने के बाद सीबीआई ने आयोग में रेड की और अहम दस्तावेज सील कर दिए। इस दौरान सीबीआई को एपीएस भर्ती-2010 में गड़बड़ी के कई सुराग मिले। सीबीआई ने 19 जून 2018 को उत्तर प्रदेश शासन को पत्र लिखकर एपीएस भर्ती की जांच के लिए विशेष अनुमति मांगी। तमाम अवरोधों के बाद फरवरी 2019 में एपीएस भर्ती-2010 की जांच के लिए पीई दर्ज कर ली गई। वहीं, जुलाई 2020 में आरओ/एआरओ-2013, सम्मिलित राज्य अवर अधीनस्थ सेवा परीक्षा-2013, उत्तर प्रदेश प्रांतीय न्यायिक सेवा परीक्षा-2013, मेडिकल परीक्षा-2014 के मामले में भी पीई दर्ज की गई। प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति के अध्यक्ष अवनीश पांडेय एवं मीडिया प्रभारी प्रशांत पांडेय की ओर से आयोग के अध्यक्ष को भेजे गए ज्ञापन में बताया गया है कि भर्तियों में धांधली के चिह्नित आयोग कर्मियों पर कार्रवाई के लिए सीबीआई ने दिसंबर 2020 में शासन को पत्र भेजकर अभियोजन की स्वीकृति मांगी थी, लेकिन आयोग ने इस तर्क के साथ अभियोजन स्वीकृति देने से इनकार कर दिया कि एपीएस भर्ती-2010 से की शैक्षिक अर्हता से संबंधित एसएलपी उच्चतम न्यायालय में विचाराधीन है। समिति के अध्यक्ष एवं मीडिया प्रभारी का कहना है कि दोनों मामले बिल्कुल अलग हैं। उनका आरोप है कि पूर्व अध्यक्ष डॉ. प्रभात कुमार के कार्यकाल में दागियों को बचाने का प्रयास किया गया। आयोग की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता के लिए जरूरी है कि दागियों पर कार्रवाई के लिए अभियोजन की स्वीकृति प्रदान की जाए। इस मसले पर समिति के पदाधिकारियों ने आयोग के नए अध्यक्ष से मिलने का समय भी भी मांगा है
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