लखनऊ: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने सरकारी कर्मियों के हित वाले सेवा संबंधी एक अहम फैसले में कहा कि विवाहित पुत्री भी अनुकंपा नियुक्ति की हकदार है। सुप्रीम कोर्ट की नजीर के हवाले से कोर्ट ने मृतक आश्रित के रूप में याची की अनुकंपा के आधार पर तैनाती पर गौर करने का आदेश नगर आयुक्त को दिया है। लखनऊ नगर निगम में कार्यरत महिला की मृत्यु पर उसकी विवाहित पुत्री ने अनुकंपा नियुक्ति का दावा किया था, जिसे नगर निगम ने खारिज कर दिया। इसके खिलाफ विवाहित पुत्री ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर गुहार लगाई थी।
न्यायमूर्ति चंद्रधारी सिंह ने यह अहम नजीर वाला फैसला अंजू यादव की याचिका को मंजूर करके सुनाया। याची का कहना था कि उसकी माता नगर निगम के कर अनुभाग में गैंगमैन के रूप में कार्यरत थीं, जिनकी बीते 9 अप्रैल को मृत्यु हो गई। इकलौती कानूनी वारिस होने के नाते उसने मृतक आश्रित नियमावली-1974 के तहत अनुकंपा नियुक्ति का दावा किया। जिसे 30 जून को सक्षम प्राधिकारी ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि विवाहित पुत्री अनुकंपा नियुक्ति पाने की हकदार नहीं है। याची ने अनुकंपा नियुक्ति नामंजूर करने के आदेश को चुनौती देकर याचिका में अपने केस पर फिर से गौर करने के निर्देश नगर आयुक्त को देने की गुजारिश की थी।याची के अधिवक्ता ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा ‘श्रीमती विनय कुमारी बनाम यूपी राज्य व अन्य’ नामक केस में दी गई नजीर के हवाले से कहा कि विवाहित पुत्री भी मृतक आश्रित नियमावली में ‘परिवार के सदस्य’ के रूप में शामिल है। ऐसे में दावा खारिज करने का आदेश निरस्त करने लायक है। उधर, सरकारी वकील ने याचिका का विरोध किया।
अदालत ने सुनवाई के बाद कहा कि मृतक आश्रित नियमावली के तहत याची भी ‘परिवार के सदस्य’ के रूप में शामिल है। ऐसे में याचिका मंजूर की जाती है। कोर्ट ने इस टिप्पणी के साथ याची के दावे को खारिज करने का आदेश रद्द कर दिया। साथ ही नगर आयुक्त को आदेश दिया कि अगर कोई कानूनी अड़चन न हो तो सुप्रीम कोर्ट की नजीर के तहत याची की अनुकंपा के आधार पर तैनाती के दावे पर नए सिरे से तीन माह में गौर करें।