प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि शिक्षकों की नियुक्ति की जांच करने का मंडलायुक्त का आदेश शिक्षा अधिकारियों पर बाध्यकारी नहीं है। कोर्ट ने जूनियर हाईस्कूल में नियुक्ति में अनियमितता की मंडलायुक्त द्वारा जांच कराने व एफआईआर कराने के निर्देश को अधिकार क्षेत्र से बाहर मान रद्द करने के एकल न्यायपीठ के आदेश पर हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया है।
एकलपीठ ने मंडलायुक्त व विशेष सचिव बेसिक शिक्षा के आदेशों को रद्द करते हुए कहा था कि प्रशासनिक अधिकारियों को शिक्षण संस्थाओं के मामले में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। शिक्षा क्षेत्र का अलग कानून है। और कार्यवाही के लिए प्राधिकारियों को अधिकार दिए गए हैं। मंडलायुक्त शिक्षा अधिकारी की श्रेणी के अधिकारी नहीं है। एकलपीठ ने नियुक्ति में अनियमितता की शिकायत पर अध्यापकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने व वेतन रोकने के आदेश रद्द कर दिए थे।
कोर्ट ने कहा, आयुक्त को भले ही जांच कराने का अधिकार न हो किंतु इससे जांच रिपोर्ट व्यर्थ नहीं होगी। रिपोर्ट को सूचना के रूप में स्वीकार कर शिक्षा अधिकारियों को स्वविवेक से कार्यवाही करने का अधिकार है। अनियमितता के खिलाफ कार्रवाई के दरवाजे बंद नहीं किए जा सकते। शिक्षा अधिकारी अपने विवेक से विभागीय व आपराधिक कार्यवाही कर सकते हैं। यह आदेश न्यायमूर्ति मनोज मिश्र तथा न्यायमूर्ति दिनेश पाठक की खंडपीठ ने राज्य सरकार की 6 विशेष अपीलों को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए दिया है।
कोर्ट ने एकलपीठ के फैसले पर हस्तक्षेप न कर कुछ हद तक संशोधित कर दिया है और शिक्षा अधिकारियों को जांच रिपोर्ट के आधार पर नये सिरे से कार्यवाही करने व संज्ञेय अपराध की दशा में एफआईआर दर्ज कराने की छूट दी है। अपील पर अपर महाधिवक्ता एमसी चतुर्वेदी व राज्य सरकार के अधिवक्ता राजीव सिंह ने बहस की।
कोर्ट ने कहा कि जांच रिपोर्ट शिक्षा प्राधिकारियों पर बाध्यकारी नहीं है। सूचना के तौर पर लेकर कार्यवाही कर सकते हैं। खंडपीठ ने अध्यापकों के वेतन रोकने के आदेश को एकलपीठ के फैसले को सही माना और कहा कि यह नियुक्ति की वैधता की जांच पर निर्भर करेगा।