बलिया : उत्तर प्रदेश में बेसिक शिक्षकों का ग्रामीण क्षेत्रों से नगरीय क्षेत्रों में तबादला अब आसान हो जाएगा। प्रदेश सरकार ने शहरी और ग्रामीण काडर खत्म करने का निर्णय लिया है। सूबे के बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश चंद्र द्विवेदी की घोषणा की से जिले में नगर क्षेत्र के परिषदीय विद्यालयों को दस साल बाद अध्यापक मिलने का रास्ता साफ हो जाएगा।
नगर क्षेत्र में अध्यापकों की तैनाती को लेकर अलग व्यवस्था के कारण जहां नगर क्षेत्र के विद्यालय अध्यापकों की भारी कमी से जूझ रहे हैं, वहीं नगर क्षेत्र के आसपास रहने वाले अध्यापक भी दूर दराज गांवों में अध्यापन को जाने को विवश हैं। सरकार के इस निर्णय से जहां विद्यालयों व छात्रों को लाभ मिलेगा, वहीं अध्यापक भी अब शहरी क्षेत्र के विद्यालयों में सेवा का लाभ पा सकेंगे।
नगर व ग्रामीण क्षेत्र का भेद खत्म करने की इस बहुप्रतीक्षित मांग पर बेसिक शिक्षा मंत्री की मुहर से शिक्षकों को खुशी है। जनपद की हालत यह है कि शिक्षकों के अभाव में शहरी विद्यालय धीरे-धीरे बिखर रहे थे। आलम यह है कि नगर क्षेत्र के चार कम्पोजिट सहित कुल 21 विद्यालयों पर महज 38 अध्यापक कार्यरत हैं। इनमें से पांच विद्यालय तो एकल हैं। एकल विद्यालय के अध्यापक की मुश्किल का अन्दाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि विद्यालय के तमाम प्रशासनिक कार्यों, बैठकों, मध्यान्ह भोजन संचालन आदि के साथ-साथ शिक्षण की भी जिम्मेदारी निभानी है। इसके अलावा अन्य विद्यालय भी शिक्षकों की भारी कमी से जूझ रहे हैं। बावजूद इसके नियमों की बाध्यता के चलते नगर क्षेत्र में अध्यापकों का स्थानांतरण अथवा नवनियुक्ति सम्भव नहीं थी। जबकि नव नियुक्ति में सरकार ने सभी एकल विद्यालयों में प्राथमिकता के आधार पर शिक्षक नियुक्त किए। ऐसे में नया आदेश शहरी क्षेत्र के विद्यालयों के लिए संजीवनी का काम करेगा।
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अध्यापकों के अभाव में कम रहती है छात्र संख्या
नगर क्षेत्र के विद्यालय अध्यापकों के अभाव का प्रभाव विद्यालय की छात्र संख्या पर भी पड़ता है। विगत शैक्षणिक सत्र में 21 विद्यालयों की छात्र संख्या 2056 है, जो औसतन लगभग 98 छात्र प्रति विद्यालय है। यह जनपद के औसतन प्रति विद्यालय छात्र संख्या से कम है। जिले के 2249 विद्यालयों में लगभग 2 लाख 80 हजार से अधिक बच्चों का नामांकन है, मतलब औसतन 125 छात्र प्रति विद्यालय। जबकि ग्रामीण क्षेत्र की अपेक्षा शहरी क्षेत्र में जनसंख्या घनत्व भी अधिक है। ऐसे में विशेषज्ञों का मानना है कि यदि शहरी क्षेत्रों के विद्यालयों को अध्यापक मिलें तो निस्सन्देह विद्यालयों के छात्र नामांकन में अप्रत्याशित वृद्धि हो सकती है।
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एकल विद्यालय को डॉ सुनील ने बनाया आदर्श
अध्यापकों के लिए संघर्ष कर रहे शहरी क्षेत्र के विद्यालयों के बीच बेहतर संचालित हो रहे विद्यालयों की भी कमी नहीं है। इसका जीवन्त उदाहरण है नगर क्षेत्र का प्राथमिक विद्यालय वजीरापुर। एकल विद्यालय होने के बावजूद प्रधानाध्यापक डॉ सुनील गुप्त के संघर्षों की देन है कि यहां प्रति वर्ष लगभग 150 बच्चों का नामांकन रहता है। यही नहीं विद्यालय की गणना जनपद के उत्कृष्ट विद्यालयों में होती है। डॉ सुनील को बेहतरीन शिक्षण के लिए विभिन्न पुरस्कार भी मिल चुके हैं। एकल विद्यालय पर शिक्षा की लौ जलाने को संकल्पित डॉ सुनील को इस प्रयास में विभिन्न व्यक्तिगत परेशानियों का भी सामना करना पड़ता है। शासन द्वारा स्वीकृत 14 आकस्मिक अवकाश भी हर साल उपयोग नहीं हो पाते। यहां तक कि कई बार शारीरिक अस्वस्थता से जूझते हुए भी विद्यालय जाना पड़ता है। बावजूद इसके डॉ सुनील ने कभी हार नहीं मानी। इसमें कोई सन्देह नहीं कि यदि प्रावि वजीरापुर को और शिक्षक मिल जाए तो विद्यालय की गणना प्रदेश के चुनिन्दा विद्यालयों में हो सकती है।
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बंद होंगे परिषदीय अंग्रेजी माध्यम विद्यालय
बेसिक शिक्षा मंत्री ने कानपुर के कार्यक्रम में ही परिषदीय अंग्रेजी माध्यम विद्यालयों के बन्द होने की भी घोषणा की। सूबे के बेसिक शिक्षा मंत्री ने कहा कि नई शिक्षा नीति के तहत अंग्रेजी माध्यम के परिषदीय स्कूलों को भी बंद करने का निर्णय लिया गया है। अंग्रेज़ी माध्यम के परिषदीय स्कूल खोले गए थे लेकिन अब नई शिक्षा नीति में इसे समाप्त कर दिया जाएगा। जनपद के सभी शिक्षा क्षेत्रों में वर्ष 2018 से पांच-पांच अंग्रेजी माध्यम विद्यालय संचालित हो रहे हैं। नयी शिक्षा नीति के तहत अब सभी स्कूलों में मातृभाषा में पढ़ाई होगी।
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नए निर्णय से शहर क्षेत्र में स्थापित विद्यालयों में अध्यापकों की तैनाती हो सकेगी। दूर-दराज में तैनात शिक्षक पद के सापेक्ष शहर क्षेत्र के स्कूलों के लिए आवेदन कर सकेंगे। नियम के चलते नगर क्षेत्र के तमाम विद्यालय एकल थे, ऐसे में वहां की कमी दूर होगी और पठन-पाठन सुचारू हो सकेगा।
शिवनारायण सिंह, बीएसए, बलिया