वाराणसी: एक जान और दर्जनों काम शिक्षक करें भी तो क्या करें? बच्चों को पढ़ाने के लिए नियुक्त प्राइमरी के शिक्षकों का कुछ ऐसा ही हाल है। बच्चों के पढ़ाने के लिए अलावा कंप्यूटर ऑपरेटर बैंक कोटेदार पंचायत प्रतिनिधियों और अब कोरोना कॉल मी चिकित्सक कर्मियों के हिस्से का काम भी शिक्षकों के ऊपर ठोक दिया गया है। जिसका परिणाम है कि मानसिक तनाव और अव्यवस्थित जीवन शैली शिक्षकों पर हावी होती जा रही है। खिलौने वाली चाबी बनी शिक्षकों को जब चाहे जैसे चाहे घुमाया जा रहा है।
रोज रोज के नए नए शासनादेश से शिक्षक रिमोट कंट्रोल की भांति पिसे जा रहे हैं। कभी मतदाता दिवस कभी स्वच्छता दिवस तो कभी स्वास्थ्य दिवस पर शिक्षकों को आदेशों की पोटली थामा दी जाती है। आदेशों की भरमार से शिक्षकों में एक अलग ही बेचैनी देखने को मिल रही है। वर्तमान समय में कुवैत के कारण स्कूल भले ही बंद ही , लेकिन शिक्षकों को ऑनलाइन क्लास और मोहल्ला क्लास लेने की जिम्मेदारी सौंपी गई है।
ऐसे में बच्चों को पढ़ाने के अलावा आधार कार्ड संशोधन मतदाता सूची निर्माण, मिड डे मील के खानों का फंड खाते में ट्रांसफर करना, भोजन बनवाना, प्रेरणा साथी तैयार करना, अभिलेखों का दुरुस्ती करण और प्रधानों के साथ मिलकर कायाकल्प को गति देना जैसी दर्जनों ऐसे कार्य हैं जिसमें उलझ कर शिक्षकों का शैक्षणिक कार्य प्रभावित हो रहा है।
ऐसे में सबसे बड़ा सवाल है कि जिन शिक्षकों के हाथ में देश के नौनिहालों का भविष्य है उनको गैर शैक्षणिक कार्यों न्यू उलझा कर देश के नवनिर्माण की न्यू को कमजोर करने का कार्य कितना हद तक सही है? क्योंकि जब शिक्षक इन सभी कार्यों में उलझा रहेगा तो फिर वह बच्चों पर पूरा फोकस कैसे करेगा? कोल्हू के बैल की तरह इसके शिक्षक शिक्षण कार्यों में अपना100% नहीं दे पा रहे हैं।
शिक्षक शिक्षिकाओं पर तनाव हो रहा है हावी
पढ़ने के अलावा दर्जनों गैर शैक्षणिक कार्यों में उलझे शिक्षक पर मानसिक तनाव हावी होता जा रहा है। आज यह है कि शिक्षक शिक्षिकाओं की निजी जिंदगी इससे प्रभावित हो रही है। एक तरफ काम का बोझ तो दूसरी तरफ शिक्षा दीक्षा की जिम्मेदारी ऐसे में शिक्षक स्कूल में तो परेशान रही रहा है घर पर भी चैन की नींद नहीं मिल पा रही है।
क्या कहते हैं शिक्षक?
राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के जिला अध्यक्ष शशांक शेखर पांडे ने कहा कि शिक्षकों पर पढ़ाने के अलावा स्कूली जिम्मेदारियां तक तो ठीक थी लेकिन कंप्यूटर आपरेटर व पंचायत प्रतिनिधियों के कार्यों की जिम्मेदारी भी ठोक दी गई है, जिससे शिक्षकों की शैक्षणिक गुणवत्ता प्रभावित हो रही है। वही महिला विंग की जिलाध्यक्ष डॉ रामा रूखैयार ने कहा कि महिला शिक्षक होने के नाते मैं शिक्षिकाओं की परेशानियों को बखूबी समझ सकती हूं। विद्यार्थियों और अभिभावकों के व्हाट्सएप ग्रुप बनाने जैसे शासनादेश के बाद हमारी निजी जिंदगी भी प्रभावित हुई है। स्कूल में तो हम अन्य कार्यों में उलझे रहते हैं अब घर पर भी चैन की सांस नहीं है।