प्रयागराज: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि सेवानिवृत्त होने से पहले ही मृत्यु पर अध्यापक के वारिसों को इस आधार पर ग्रेच्युटी देने से इन्कार नहीं किया जा सकता कि अध्यापक ने सेवानिवृत्ति विकल्प नहीं भरा था। यह आदेश न्यायमूíत यशवंत वर्मा ने सुशीला यादव, अभिषेक चंद्र सिन्हा व माया देवी की याचिकाओं पर दिया है।
कोर्ट ने कहा कि सेवा नियमावली के अनुसार तीन साल की सेवा करने वाले अध्यापक को प्राप्त अंतिम वेतन का छह गुना ग्रेच्युटी पाने का अधिकार है। सेवानिवृत्ति आयु 60 से बढ़कर 62 किए जाने के बाद ग्रेच्युटी का विकल्प देने का निर्देश जारी किया गया। विकल्प सेवानिवृत्ति से एक वर्ष के भीतर देना था, किंतु विकल्प भरने से पहले ही मौत हो गई। ऐसे में ग्रेच्युटी का भुगतान करने से इन्कार नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने तीन माह में ग्रेच्युटी की गणना कर निर्णय से याची को सूचित करने का निर्देश दिया है।
सभी याची बेसिक स्कूल के अध्यापक के वारिस हैं। कोर्ट ने उषा रानी केस के हवाले से कहा कि मौत कभी भी हो सकती है। यदि विकल्प नहीं भरा गया है तो इस आधार पर ग्रेच्युटी देने से मना नहीं कर सकते। वर्ष 1964 में नियमावली बनी। पहले सेवानिवृत्ति आयु 58 वर्ष थी, बढ़कर 60 वर्ष हुई। नौ नवंबर, 2011 को सेवानिवृत्ति आयु बढ़ाकर 62 वर्ष कर दी गई है। 60 साल में सेवानिवृत्त होने वाले अध्यापकों को ग्रेच्युटी पाने का हक है। इसके लिए विकल्प भरना होगा। सवाल उठा कि पहले ही मौत हो गई तो विकल्प के अभाव में क्या ग्रेच्युटी से इन्कार कर सकते हैं? कोर्ट ने कहा कि सेवाकाल में मृत्यु की दशा में ग्रेच्युटी देने से इन्कार नहीं किया जा सकता।