पिछड़े वर्ग की जाति आधारित जनगणना प्रशासनिक रूप से कठिन और दुष्कर कार्य है। इस तरह की सूचनाओं से दूर रहना बुद्धिमत्तापूर्ण नीतिगत फैसला है। केंद्र सरकार ने यह बात सुप्रीम कोर्ट में कही है। पिछड़े वर्ग के अंतर्गत आने वाली जातियों के लोगों की गणना की मांग को लेकर हाल ही में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दस दलों के प्रतिनिधिमंडल के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले थे।
केंद्र सरकार ने अपने शपथ पत्र में कहा है कि 2011 में हुई सामाजिक-आर्थिक और जाति आधारित जनगणना के आंकड़े गलतियों और अवास्तविक सूचनाओं से भरे हुए थे। यह शपथ पत्र महाराष्ट्र सरकार की उस याचिका के जवाब में दिया गया है जिसमें राज्य की सामाजिक-आर्थिक और जाति आधारित जनगणना 2011 के मूल आंकड़े दिलवाने की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि केंद्र सरकार और जनगणना से संबंधित एजेंसियों से तमाम बार की मांग के बावजूद ये आंकड़े नहीं मिल पाए हैं। इसलिए शीर्ष न्यायालय में याचिका दायर करनी पड़ी है।
केंद्र सरकार की ओर से सामाजिक न्याय एवं सशक्तीकरण मंत्रलय के सचिव ने सुप्रीम कोर्ट में शपथ पत्र दाखिल किया है। उसमें कहा गया है कि केंद्र सरकार ने जनवरी 2020 में अधिसूचना जारी कर 2021 की प्रस्तावित जनगणना के लिए कई तरह की सूचनाओं को एकत्र कराया था।
’>>केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दिया शपथ पत्र
’>>कहा, इससे दूर रहने का फैसला बुद्धिमत्तापूर्ण