यूपी में प्रदेश के सभी राज्य विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों में शिक्षकों व शिक्षणेत्तर कर्मचारियों को 31 मार्च 2023 तक लंबी अवधि का अवकाश न देने का निर्देश दिया है। केवल मातृत्व अवकाश को इससे मुक्त रखा गया है। इस फैसले पर शिक्षकों व कर्मचारियों के संगठनों ने नाराजगी जताई है।
अपर मुख्य सचिव उच्च शिक्षा मोनिका एस. गर्ग की तरफ से जारी यह आदेश विश्वविद्यालयों व कर्मचारियों में चर्चा का विषय बना हुआ है। शासनादेश में सत्र नियमित के नाम पर अवकाश निरस्त किए जाने की बात कही गई है। इसमें यह भी कहा गया है कि विश्वविद्यालयों व महाविद्यालयों में केवल कार्यरत शिक्षकों व कर्मचारियों के निधन पर अपराह्न तीन बजे शोक सभा होगी। अपराह्न तीन बजे तक कक्षाएं यथावत चलेंगी।
शासनादेश में कहा गया है कि कोरोना महामारी के कारण गत वर्ष शिक्षण कार्य प्रभावित हुआ, जिससे सत्र अनियमित हो गया। सत्र नियमित करने के लिए छात्र हित में सत्र सामान्य होने तक विश्वविद्यालयों व महाविद्यालयों में होने वाले शीतावकाश को निरस्त किया जा सकता है। इसी तरह आवश्यकता के अनुसार 15-15 दिन का ग्रीष्मावकाश देते हुए दो बार में आधे-आधे शिक्षकों को शिक्षण संस्थान में बुलाया जा सकता है।
उत्तर प्रदेश राज्य विश्वविद्यालय कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष बृज भूषण मिश्र ने कहा कि यह आदेश उत्पीड़नात्मक है। अवकाश कर्मचारियों का अधिकार है, जिसे वह अपनी जरूरत पर ही लेता है। लखनऊ विश्वविद्यालय संबद्ध महाविद्यालय शिक्षक संघ (लुआक्टा) के अध्यक्ष डॉ. मनोज पांडेय ने भी अवकाश निरस्त किए जाने पर नाराजगी जताई है।