वाराणसी: मिशन कायाकल्प के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों के तमाम परिषदीय विद्यालय स्मार्ट हो चुके हैं लेकिन शहरी क्षेत्र के दो दर्जन से अधिक विद्यालयों की दशा बजट के अभाव में खराब है।
बेसिक शिक्षा राज्य मंत्री डॉ. सतीश चंद्र द्विवेदी ने वाराणसी के ग्रामीण क्षेत्र के 124 विद्यालयों में स्मार्ट क्लास की की शुरुआत तो कर दी लेकिन नगर क्षेत्र के इन जर्जर विद्यालयों की तरफ उनका ध्यान किसी ने नहीं आकृष्ट कराया। पहले नगर क्षेत्र में 100 विद्यालय थे लेकिन नगर निगम में कुछ गांवों के शामिल होने के बाद अब परिषदीय विद्यालयों की संख्या 165 हो जाएगी।
छह कक्षों का विद्यालय, पढ़ाई सिर्फ दो में
सिकरौल स्थित प्राथमिक विद्यालय प्रथम में कहने को तो छह कमरे हैं लेकिन शिक्षकों के अभाव में कक्षा तीन, चार व पांच के बच्चों की पढ़ाई एक कक्षा में चल रही है। विद्यालय में बच्चों की संख्या तो 100 है लेकिन उन्हें पढ़ाने के लिए अब सिर्फ एक शिक्षामित्र को जिम्मेदारी दी गई है। हाल ही में प्राथमिक कन्या पाठशाला के एक अन्य शिक्षक को यहां संबद्ध किया गया है। विद्यालय की एक कक्षा में गलियों के सुंदरीकरण के कार्य में लगे मजदूर आराम फरमा रहे हैं।
खतरे के साए में पढ़ने को मजबूर हैं नौनिहाल
नई सड़क स्थित प्राथमिक विद्यालय शेख सलीम फाटक को बाहर से देखने पर तो पता ही नहीं चल पाता है कि यह कोई सरकारी विद्यालय है। कारण है नई सड़क पर जूते, चप्पल व कपड़ों के लगने वाली स्थायी दुकानें हैं। विद्यालय की स्थिति भी बहुत ठीक नहीं है, गाडर के सहारे बनी विद्यालय की छत खतरे अहसास कराती है। खिड़की व दरवाजे भी खस्ताहाल हैं। वहीं विद्यालय से सटकर लगे बिजली के खंभे व तारों के जंजाल के बीच बच्चे पढ़ाई करने को मजबूर हैं।
बरसात में नहीं मिलती सिर छुपाने की जगह
दशाश्वमेध क्षेत्र के खारीकुंआ प्राथमिक विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चों को बरसात के दौरान सिर छुपाने की थी जगह नहीं मिल पाती है। विद्यालय की छत व दीवारें जर्जर है। इसकी वजह से दीवारों में सीलन बनी रहती है और बारिश होने पर छत से पानी टपकता है। इसके नीचे बैठकर पढ़ना मुश्किल होता है। वहीं विद्यालय की टूटी हुई सीढ़ियाें के सहारे ही बच्चे अपने कक्षाओं में आते जाते हैं