उत्तर प्रदेश में फर्जी डिग्री का एक बड़ा नेटवर्क सामने आया है. इसमें कई लोगों को डिग्रियां बांट दी गई. यही नहीं डिग्रियों में छेड़छाड़ कर नंबर भी बढ़ाए गए. इतना ही नहीं इन फर्जी डिग्रियों के सहारे कई लोगों को सरकारी विभागों में नौकरी भी मिल गई. लिहाजा ये मामला सामने आने के राज्य सरकार ने इसके लिए स्पेशल इनवेस्टिगेशन टीम (एसआईटी) को जांच सौंपी थी. लेकिन इस मामले में एक बड़ा खुलासा हुआ है. इस मामले में देश के दो विभिन्न यूनिवर्सिटी के दो मौजूदा कुलपतियों के नाम भी सामने आए हैं. इन दो कुलतियों के अतिरिक्त 19 लोगों के खिलाफ एसआईटी को सबूत मिले हैं.
एसआईटी की रिपोर्ट में दो कुलपतियों की भूमिका फर्जी डिग्री बांटने में सामने आई है. उसमें केंद्र सरकार द्वारा संचालित महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा, महाराष्ट्र के प्रोफेसर रजनीश कुमार शुक्ला और झारखंड सरकार के चाईबासा झारखंड सरकार के कोल्हान विश्वविद्यालय के वर्तमान वीसी प्रोफेसर गंगाधर पांडा का नाम प्रमुख हैं. इसके साथ ही 19 लोगों की भूमिका भी एसआईटी की जांच में उजागर हुई है. जानकारी के मुताबिक प्रोफेसर रजनीश कुमार शुक्ला को भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICSSR) का हाल ही में सदस्य नियुक्त किया नियुक्त किया है.
एसआटी ने 2004 में शुरू की थी जांच
इस में फर्जी डिग्री का मामला सामने आने के बाद यूपी सरकार ने एसआईटी जांच के आदेश दिए थे. क्योंकि संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय यूपी सरकार के अधीन आता है और एसआईटी ने 2004 और 2014 के बीच विश्वविद्यालय में कथित अनियमितताओं की जांच की थी. वहीं अपनी 99-पृष्ठ की रिपोर्ट में एसआईटी ने दावा किया है कि विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रारों, परीक्षा नियंत्रकों, संपूर्णानंद के सिस्टम मैनेजरों ने धोखाधड़ी कर बड़ी संख्या में फर्जी डिग्री बांटी है और इन डिग्रियों से कई लोग सरकारी नौकरी कर रहे हैं.
इस मामले में विश्वविद्यालय में नौ रजिस्ट्रार/परीक्षा नियंत्रकों, उप पंजीयकों और सहायक पंजीयकों में प्रोफेसर पांडा और प्रोफेसर का नाम लेते हुए एसआईटी ने कहा कि इन लोगों ने अपने कर्तव्यों का पालन नहीं किया और सत्यापन विभाग ने धोखाधड़ी के जरिए कई फर्जी डिग्रियों को बेचा है. यही नहीं परीक्षा विभाग के रिकॉर्ड से बड़े पैमाने पर छेड़छाड़ की गई.
जानें क्या कहना है आरोपियों का
इस मामले में प्रोफेसर शुक्ला ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि इस मामले में उन्होंने एसआईटी के आदेश को चुनौती दी है और एसआईटी की 2020 की रिपोर्ट को अंतिम नहीं कहा जा सकता. उन्होंने कहा कि पिछले महीने उन्होंने एसआईटी को एक हलफनामे के रूप में अपना बयान दर्ज कराया है. प्रोफेसर शुक्ला ने कहा कि मेरी रिपोर्ट के आधार पर ही विश्वविद्यालय के दो अफसरों को फर्जी डिग्री मामले में जेल भेजा गया था. वहीं प्रोफेसर पांडा ने कहा एसआईटी ने मेरा बयान दर्ज किया है और मैंने एसआईटी को साफ बता दिया है कि दस्तावेज मेरे पास केवल औपचारिकता के तौर पर आते थे.
एसआईटी ने की 5797 शिक्षकों की डिग्रियों की जांच
इस मामले में एसआईटी ने यूपी के 69 जिलों में कार्यरत 5,797 शिक्षकों की डिग्रियों की जांच की, और संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय द्वारा जारी 1,086 डिग्री को फर्जी पाया. वहीं एसआईटी को अन्य 207 डिग्रियों में धोखाधड़ी मिली.