उदाहरण एक: जयसिंह बिना ड्रेस पहले विद्यालय आया, उसके पास स्वेटर भी नहीं है और न जूता-मोजा। बोला गुरु जी ने पापा से ड्रेस दिलवइबे का कही थी, पापा से कहो हई, लेकिन अभई उनने बनवाई नाहीं।
उदाहरण दो: कंचन भी बिना ड्रेस और स्वेटर के नंगे पैर विद्यालय आती है, जबकि उसके पिता के खाते में ड्रेस, बैग, जूता-मोजा और स्वेटर के लिए 1100 रुपये भेजे जा चुके हैं।
हरदोई: परिषदीय विद्यालयों के बच्चों को गुणवत्ता पूर्ण ड्रेस, बैग, स्वेटर और जूता मोजा मिलें इसके लिए इस वर्ष से नई व्यवस्था शुरू की गई है। अभिभावकों के खातों में सीधे 1100-1100 रुपये भेजे गए हैं, जिससे कि वह बच्चों की ड्रेस आदि खरीद लें, लेकिन नई व्यवस्था का भी बच्चों को लाभ नहीं मिल पा रहा। वही कमीशनबाजी आड़े आती थी, अब महंगाई और अभिभावकों की लापरवाही सामने आ रही है। खबर में शामिल दो उदाहरण तो महज समझाने के लिए हैं। अधिकांश बच्चों की यही दशा है, अभी तक उन्हें ड्रेस नहीं बनवाई गई है। उनका कहना है कि पापा ड्रेस बनवाई ही नाहीं रहे।
बच्चों को दो-दो सेट स्कूली ड्रेस, जूता मोजा, स्वेटर, बैग दिया जाता है। शासन स्तर से तो गुणवत्ता पूर्ण ड्रेस आदि देने की व्यवस्था की गई, लेकिन इसमें खेल होता रहा। 300-300 रुपये की ड्रेस के स्थान पर मुश्किल से 200-200 की ड्रेस मिलती। जूट के स्वेटर दे दिए जाते, ऐसा न हो इसके लिए इस वर्ष से अभिभावकों के खातों में 1100-1100 रुपये भेजे गए हैं, जिले के पांच लाख, पांच हजार 848 बच्चों के सापेक्ष अभी तक दो लाख 30 हजार 327 बच्चों के अभिभावकों के खातों में रुपये भेजे जा चुके हैं और इससे उन्हें ड्रेस और स्वेटर आदि लेना है, लेकिन लापरवाही हो रही है। हालांकि अभिभावकों का कहना है कि इतने रुपये से सब कुछ नहीं मिल पा रहा है, लेकिन जो मिल रहा है वह भी खरीदा नहीं जा रहा और सर्दी शुरू हो जाने के बाद भी बच्चे नंगे पैर बिना जूता-मोजा के आ रहे हैं।
अभिभावकों के खातों में रुपये भेजे जा चुके हैं, जो बचे हैं उनके खातों में भी रुपये जा रहे हैं, अब उन्हें ही ड्रेस आदि लेनी है, लेकिन वह लापरवाही कर रहे हैं और उन्हें जागरूक करने के लिए अध्यापकों को दिशा निर्देश दिए गए हैं।
—-राकेश शुक्ला, जिला समन्वयक