लखनऊ : इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने पंचायत चुनाव में ड्यूटी के दौरान कोरोना से मरने वाले कर्मियों के मुआवजे के शासनादेश को चुनौती देने के मामले में राज्य सरकार से तीन सप्ताह में जवाब मांगा है। इसमें चुनाव ड्यूटी से 30 दिन में कोरोना से मरने वाले सरकारी कार्मिकों के आश्रितों को ही मुआवजा देने का प्रावधान किया गया है। न्यायमूर्ति मनीष माथुर ने यह आदेश कुशलावती की याचिका पर दिया।
याची के अधिवक्ता शरद पाठक की दलील थी कि सुप्रीम कोर्ट ने रीपक कंसल के केस में कहा है कि कोरोना से दो से तीन माह में मरने वालों के परिजनों को मुआवजा दिया जा सकता है। जबकि राज्य सरकार के बीते एक जून के शासनादेश में यह अवधि 30 दिन कर दी गई है, जो तर्कसंगत नहीं है। कोर्ट ने याचिका को गौर करने लायक करार देकर राज्य सरकार समेत अन्य पक्षकारों को मामले में जवाबी हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया है। अदालत ने अगली सुनवाई 17 दिसंबर को नियत की है।