घर से लेकर स्कूल तक नून, तेल की चिंता बनी रहती है। आज का हो गया, कल का कहां से आएगा? यह बड़ा सवाल रहता है।
सरकारी काम है मिलेगा इस बात को समझाते समझाते माथा ठनक जाता है। प्रधानजी टेटा जाते हैं ऊपर से। कहते हैं, फिर काहे की चिंता, आप इतना भी नहीं कर सकते। मंगवा लीजिए, बनने दीजिए भोजन। बच्चे खाएंगे दुआ देंगे। मोटी मोटी तनख्वाह लेते हैं, हमको सरकार कहां वेतन दे रही है? जब आएगा पैसा ले लीजिएगा। अफसर भी देख लो भाई की छुट्टी पिला कर किनारा कर रहे हैं। मिड डे मील का चूल्हा न जला तो जागरूक अभिभावक तमतमा जाते हैं। सरकार तो सब दे रही, बस गुरुजी हैं कि खाए जा रहे हैं। शिकायत होते ही अफसर तुरंत निरीक्षण और जांच शुरू कर देंगे। नौकरी का सवाल है इसलिए गर्दन नपेगी गुरुजी की, नर्म चारा जो ठहरे।