प्रयागराज, दमदार शायरी से ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ क्रांति की अलख जगाने वाले अकबर इलाहाबादी का नाम बदलकर अकबर प्रयागराजी कर दिया गया है। यह कारनामा किया है उत्तर प्रदेश उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग ने। अकबर के अलावा आयोग ने तेग इलाहाबादी और राशिद इलाहाबादी जैसे शायरों का नाम भी बदला है। आयोग की वेबसाइट में ‘अबाउट इलाहाबाद’ वाले कालम में सबके नामों के आगे से इलाहाबादी हटाकर प्रयागराजी किया गया है। आयोग द्वारा किए गए बदलाव की साहित्य जगत में कड़ी आलोचना हो रही है।
पूर्व में प्रयागराज का नाम इलाहाबाद था
इलाहाबाद का नाम पूर्व में प्रयागराज था। इसकी धार्मिक व पौराणिक महत्व को खत्म करने के लिए मुगल शासकों ने प्रयागराज का नाम बदलकर इलाहाबाद कर दिया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अक्टूबर 2018 में इलाहाबाद का नाम बदलकर पुन: प्रयागराज करने का महत्वपूर्ण कदम उठाया था। इसके बाद सरकारी दस्तावेजों में प्रयागराज नाम दर्ज हो गया।
उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग की वेबसाइट
उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग की वेबसाइट के कालम में ‘अबाउट इलाहाबाद’ सब कालम है। इसमें क्लिक करने पर एबाउट इलाहाबाद लिखा है। उस पर क्लिक करने पर एक पेज खुलता है। इसमें प्रयागराज का व हिंदी साहित्य का इतिहास लिखा है। इसी में अकबर इलाहाबादी को अकबर प्रयागराजी लिखा गया है। इनके अलावा तेज इलाहाबादी को तेग प्रयागराजी और राशिद इलाहाबादी को राशिद प्रयागराजी लिखा गया है।
इस बदलाव की साहित्य जगत में हो रही आलोचना
वरिष्ठ कथाकार डा. कीर्ति कुमार सिंह कहते हैं कि उच्चतर शिक्षा आयोग द्वारा किया गया बदलाव अनुचित है। अकबर इलाहाबादी का नाम बदलना इतिहास खत्म करने के समान है। साहित्यकार संध्या नवोदिता कहती हैं कि यह गलत निर्णय है। इससे रचनाकारों की भावनाएं आहत हुई हैं। कवि शैलेंद्र मधुर कहते हैं कि किसी के नाम से छेड़छाड़ नहीं होना चाहिए। शायर इम्तियाज अहमद गाजी कहते हैं कि नाम ही रचनाकार की पहचान होती है। नाम बदलना रचनाकार की हत्या करने के समान है, जिसे कोई स्वीकार नहीं करेगा। अकबर इलाहाबादी ही उनकी पहचान है। जिला का नाम भले बदलकर प्रयागराज किया गया हो पर इतने बड़े शायर का नाम नहीं बदलना चाहिए।
कौन थे अकबर, तेग व राशिद
अकबर इलाहाबादी का जन्म 16 नवंबर 1846 में बारा कस्बे में हुआ था। उनका बचपन का नाम सैयद अकबर हुसैन था। अकबर के पिता सैयद तफज्जुल हुसैन उन्हें व्याकरण और गणित की पढ़ाई में आगे बढ़ाना चाहते थे, लेकिन 14 वर्ष की उम्र में अकबर को अंग्रेजी पढऩे का शौक जागा। उन दिनों अरबी, फारसी जानने वालों की खासी तादाद थी, लेकिन अंग्रेजी जानने और पढऩे वालों की संख्या नाम मात्र की ही थी। उन्होंने 1867 में वकालत की परीक्षा पास की, इसके दो वर्ष बाद ही वे नायब तहसीलदार हो गए। 1881 में उन्हें मुंसिफ का पद मिला। उनकी योग्यता और ईमानदारी को देखकर सरकार काफी प्रभावित हुई और वह 1888 में सदर उल सदूर पद पर नियुक्त कर दिए गए। 1892 में अदालत खफीफा के जज नियुक्त हुए और 1894 में डिस्ट्रिक सेशन जज तक का सफर तय किया। 1898 में सरकार ने उन्हें ‘खान बहादुर’ की पदवी से नवाजा। नौकरी से सेवानिवृत्ति के बाद 1910 में उनकी पत्नी का निधन हो गया।
अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ शायरी के माध्यम से की थी मुखालफत
इसके कुछ ही दिनों बाद उनका जवान बेटा हाशिम भी इस दुनिया से रुखसत हो गया। अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ अपनी शायरी के माध्यम से जोरदार मुखालफत की। वहीं, तेग इलाहाबादी का असली नाम मुस्तफा जैदी है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पढऩे वाले तेग देश का विभाजन होने पर पाकिस्तान चले गए। कराची में बैठकर शायरी करने वाले तेग अपने नाम के आगे ‘इलाहाबादी’ लिखते थे। इसी प्रकार राशिद इलाहाबादी का जन्म जनवरी 1944 को प्रयागराज के लालगोपालगंज कस्बे के रावन में हुआ था। इनकी काव्य संग्रह ‘मुट्ठी में आफताब’ को उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी ने सम्मानित किया है।