यदि विद्यालयों ने नियमित रूप से मध्यान्ह भोजन नहीं बन रहा है तो प्रधानाध्यापक से लेकर सभी अधिकारियों के दायित्व निर्धारित किये गये हैं। उक्त जानकारी एम डी एम प्राधिकरण द्वारा डॉ रहबर की जनसूचना में पूछे गए प्रश्नों के जबाब में उपलब्ध कराई है। डॉ रहबर द्वारा पूछे गए प्रश्नों में प्रधानाध्यापक के दायित्व, प्रधान, कार्यदायी संस्था के उत्तरदायित्व, परिवर्तन लागत एवं खाद्यान्न की उपलब्धता से संबंधित थे । उक्त के जबाब में प्राधिकरण द्वारा 7 एवं 18 सितंबर 2009 के शासनादेश का जिक्र करते हुए जानकारी उपलब्ध कराई है। इसके प्रधानाध्यापक का दायित्व होगा कि वह अपने विद्यालय में बच्चों को भोजन न मिलने की स्थिति में तत्काल कार्यदायी संस्था, ग्राम प्रधान, सभासद से मिलकर यह सुनिश्चित कराये कि भोजन नियमित रूप से बने एवं बच्चो को नियमित मिले। यदि इस प्रयास के बाद भी 3 दिन के भीतर भोजन बनना प्रारंभ नहीं हो पाता है तो प्रधानाध्यापक इसकी लिखित सूचना खण्ड शिक्षा अधिकारी को उपलब्ध कराएगा एवं पावती प्राप्त करेगा। खण्ड शिक्षा अधिकारी प्रधान, सभासद आदि से संपर्क कर समस्या का निराकरण करेगा।
यदि इसके वावजूद भोजन बनना शुरू नहीं हो पाता है तब बी. ई. ओ. तीन दिन के भीतर इसकी लिखित सूचना एम डी एम समन्वयक एवं जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी को उपलब्ध कराएगा। यदि बी एस ए के प्रयास के बाद भी भोजन बनना प्रारंभ नहीं होता है तब इस प्रकरण को जिलाधिकारी के समक्ष रखा जाएगा। जिलाधिकारी प्राथमिकता के आधार पर दोषी व्यक्ति, संस्था का दायित्व निर्धारित करते हुए कार्यवाही करेंगे। शासनादेश में यह भी वर्णित है कि यदि भोजन 15 दिन तक न बने तो एडी बेसिक एवं मंडलायुक्त के संज्ञान में लाया जाए एवं 20 दिन बाद इसकी सूचना मध्यान्ह भोजन प्राधिकरण को उपलब्ध कराई जाए। खाद्यान्न उठान के संबंध में बताया गया कि विद्यालय तक खाद्यान्न पहुचाने का दायित्व उठान एजेंसी का है।