आम बजट में स्कूली और उच्च शिक्षा के लिए आवंटन बढ़ाए जाने की उम्मीद जताई जा रही है। लेकिन जीडीपी का छह फीसदी शिक्षा पर खर्च का लक्ष्य अभी भी दूर की कौड़ी नजर आ रहा है। इस बजट में नई शिक्षा नीति को लागू करने के लिए संसाधनों की जरूरत, ऑनलाइन शिक्षा, सरकारी स्कूलों की मजबूती, खाली पदों पर भर्ती, नए संस्थान खोलने के अलावा कोविड से प्रभावित बच्चों की चिंता के समाधान की छाया नजर आ सकती है। बड़ा सवाल कोविड की नई चुनौती के मद्देनजर बच्चो को निर्बाध गुणवत्ता युक्त शिक्षा उपलब्ध कराना भी है।
इस पर नजर रहेगी: कोरोना काल में स्कूल से बाहर हुए बच्चों को वापस लाना, नए संस्थान और बच्चों के बड़ी संख्या में सरकारी स्कूलों की तरफ रुख करने की वजह से संसाधन बढ़ाना जैसे लक्ष्य कैसे साधे जाएंगे।
खर्चे का 2.67
वर्ष 2021-22 के बजट में शिक्षा मंत्रालय को 93,224 करोड़ रुपये आवंटित हुए थे। दस सर्वाधिक आवंटन मंत्रालयों में शिक्षा आठवें स्थान पर था। शिक्षा मंत्रालय के हिस्से में साल 2021-22 के लिए अनुमानित केंद्र के कुल खर्चे का 2.67 प्रतिशत ही आया।
आवंटित राशि खर्च ही नहीं होती
शिक्षा मद में आवंटन और खर्च के बीच समन्वय की कमी भी देखने को मिलती है। जितना आवंटन होता है उसके मुताबिक काफी राशि खर्च नही हो पाती। इसका असर नए आवंटन पर भी पड़ता है। मिड डे मील स्कीम, बच्चों की किताब और पोशाक पर खर्च भी कई जगहों पर खर्च नही हुआ। लिहाजा बजट में वित्तीय अनुशासन भी एक पहलू हो सकता है।
वर्ष 2019-20 के आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया था कि वर्ष 2014-15 से 2018-19 के दौरान केंद्र और राज्य सरकार दोनों का शिक्षा पर खर्चा देश की कुल जीडीपी का बस 3 रहा है। वर्ष 1968 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति में कहा ये गया था कि देश की जीडीपी का 6 हिस्सा शिक्षा के मद में खर्च किया जाए।