लखनऊ। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने एक अहम फैसले में कहा है कि वैवाहिक विवाद से जुड़े आपराधिक मामलों में पक्षों (पति-पत्नी) की सहमति के आधार पर प्राथमिकी को रद्द करने में कोई बाधा नहीं है। इस अहम नजीर के साथ कोर्ट ने राजधानी के एक दंपती के बीच चल रहे आपराधिक मुकदमे की कार्यवाही को उनके बीच सुलह होने की वजह से निरस्त कर दिया।
न्यायमूर्ति राजीव सिंह ने यह फैसला पति की तरफ से दायर याचिका पर सुनाया। कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दायर याचिका को स्वीकार कर लिया और पति के खिलाफ दर्ज आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया। इस मामले में कुछ मुद्दों के कारण, पत्नी ने पति और उसके संबंधियों के खिलाफ मारपीट व दहेज प्रताड़ना आदि का आरोप लगाकर स्थानीय मड़ियांव थाने में प्राथमिकी दर्ज कराई थी। मामले में जांच शुरू हुई और निचली अदालत के समक्ष मध्यस्थता भी शुरू की गई थी, लेकिन याची पति नीचे की अदालत के समक्ष शुरू की गई मध्यस्थता कार्यवाही से संतुष्ट नहीं था। इसलिए पति ने यह याचिका दायर की और याची के वकील के साथ-साथ पत्नी के वकील की सहमति से मामला हाईकोर्ट के मध्यस्थता और सुलह केंद्र को भेजा गया था।
याची के वकील ने कोर्ट को बताया कि मध्यस्थता सफल रही और पत्नी, अपने पति और बच्चों के साथ उसके वैवाहिक घर में रह रही है। पत्नी आपराधिक मामले में लंबित कार्यवाही को वापस लेने पर सहमत है। तर्क दिया कि वैवाहिक विवाद से जुड़े आपराधिक मामलों को समझौते के आधार पर रद्द किया जा सकता है, भले ही आरोप पत्र दाखिल हो गया हो। कोर्ट ने भजन लाल मामले के फैसले का हवाला दिया जिसमे सुप्रीम कोर्ट ने 7 स्थितियों को निर्धारित किया जब प्राथमिकी/आपराधिक मामले को रद्द किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि वर्तमान मामला भजन लाल मामले में निर्णय के दायरे में आता है। कोर्ट ने अदालत के मध्यस्थता और सुलह केंद्र के समक्ष पक्षों के समझौते के संदर्भ में प्राथमिकी और उसके परिणामी कार्यवाही को रद्द कर दिया।