इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि संदेह कितना भी मजबूत हो, उसके आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। अभियोजन पक्ष को यह साबित करना पड़ेगा कि अपीलकर्ता दोषी है। इसके लिए अभियोजन को तथ्यों और सबूतों को प्रस्तुत करना ही पड़ेगा। मौजूदा मामले में अभियोजन पक्ष यह साबित करने में नाकाम रहा कि अपीलार्थी दोषी है। वह मजबूत संदेह के आधार पर अपना दावा कर रहा है।
जबकि, तथ्यों और सबूतों को प्रस्तुत करने में नाकाम रहा। यह आदेश न्यायमूर्ति मनोज कुमार गुप्ता और न्यायमूर्ति ओम प्रकाश त्रिपाठी की खंडपीठ ने सुनाया है। खंडपीठ मुजफ्फरनगर निवासी राजपाल की अपील पर सुनवाई कर रही थी।
मामले में कोर्ट ने कहा कि घटना दुर्भाग्यपूर्ण और भयानक हुई थी लेकिन, यह अपने आप में पर्याप्त नहीं है। अभियोजन पक्ष को उचित संदेह से परे स्थापित करना होगा कि जिस व्यक्ति पर मुकदमा चलाया जा रहा है, वह अपराध का दोषी है। मामला शाहपुर थाने का है। बबलू ने अपने पिता रामफल की मृत्यु की शिकायत की थी।
आरोप लगाया था कि उसके पिता को शराब पिलाकर किसी ने हत्या कर दी। मामले में राजपाल को आरोपी बनाया गया था। ट्रायल कोर्ट ने राजपाल को आजीवन कारावास और 15 हजार रुपये की जुर्माने की सजा सुनाई थी। हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलट दिया और आरोपी को दोष से बरी कर दिया।