गोरखपुर माध्यमिक विद्यालयों में पूरी जिंदगी अध्यापन करने वाले शिक्षक अपने सेवानिवृत्ति के बाद सम्मानजनक पेंशन के अधिकार से मंचित हो गए हैं। यह नए पेंशन स्कीम की हकीकत नहीं, बल्कि तकनीकी कारणों से हुई गड़बड़ी है। इसका नतीजा यह हुआ कि सेवानिवृत्ति के वक्त जिन शिक्षकों को 70-80 हजार रुपये प्रतिमाह वेतन मिल रहा था. उनकी पेंशन 764 रुपये और 869 रुपये प्रतिमाह फिक्स हुई है।
शायद इन्हीं विसंगतियों के चलते न्यू पेंशन स्कीम का सरकारी शिक्षक और कर्मचारी विरोध भी कर रहे हैं। ऐसा नहीं है कि अपने हक के लिए इन शिक्षकों ने कोई आवाज नहीं उठाई। विभागों के चक्कर लगाकर सभी को चप्पले तक पिस गई लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। अब लचर सरकारी व्यवस्था को कोसने के अलावा इनके पास कोई और चारा नहीं बचा है। अमर उजाला संवाददाता से बातचीत में इन शिक्षकों ने बताया कि सेवाकाल के दौरान करदाताओं की सूची में हमेशा रहने वाले इन शिक्षकों को पेंशन के अलावा कोई और सरकारी सुविधा का लाभ तक नहीं मिलता है। यानी जीवन यापन का पूरा खर्च एकलौती पेंशन पर ही टिका है। अगर महज दवा का खर्च भी देखा जाए तो इन शिक्षकों को पेंशन से नहीं चलेगा ताज्जुम तो इस बात का है कि कई ऐसे शिक्षक भी है जिनको सेवानिवृत्ति के बाद पेंशन ही नहीं मिल रही है।
क्यों हैं पुरानी पेंशन की मांग
उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षक संघ (चेतनारायण गुट) के मंत्री रवींद्र प्रताप सिंह ने बताया कि पुरानी पेंशन स्कीम (ओपीएस) के अंतर्गत कर्मचारी का अंशदान नहीं होता है। जीपीएफ की कटौती होती है, जिस वजह से सेवानिवृत्ति के वक्त धनराशि और उसके व्याज के रूप में अच्छी धनराशि शिक्षक या कर्मचारी को मिल जाती है। मूलवेतन का लगभग 40-50 फीसदी हिस्सा पेंशन के रूप में आजीवन मिलता है। मंडलीय मंत्री रणजीत सिंह ने कहा कि एक और ख़ास वजह इसे अलग बनाती है कि वेतन की तरह जब जब डीए में बढ़ोतरी होती है तो पेंशन भी बढ़ती है। जबकि, एनपीएस में एक बार पैशन फिक्स होने के बाद कोई वृद्धि नहीं होती है।
कहां हुई दिक्कत
भटहट से 30 जून 2015 को सेवानिवृत्त बलिराम सिंह का वेतन 45 हजार रुपये निर्धारित था एनपीएस के मुताबिक उनकी पेंशन हो नहीं निर्धारित हुई है।
केस 3
11-13 साल की सेवा के दौरान इन शिक्षकों के न्यू पेंशन स्कीम के अंतर्गत होने वाले अंशदान में या तो कटौती ही नहीं हुई। जहां कटौती हुई वहां पूरे सेवाकाल के दौरान अंशदान की कटौती नहीं हुई। अध्यापन कार्य के दौरान शिक्षकों ने भी इसका ध्यान नहीं दिया, मगर सवाल उठता है कि एनपीएस को फटीती में अंशदान तो सरकार भी देती है तो अकेले शिक्षक हो इसके लिए जिम्मेदार कैसे हुए।
क्या है नियम
न्यू पेंशन स्कीम के अंतर्गत जो धनराशि जमा होती है, उसकी 40 फीसदी धनराशि पेंशन के रूप में कर्मचारी को मिलती है। जबकि 60 फीसदी भुगतान होता है। एनपीएस में जो अंशदान होता है उसमें 10 फीसदी अशदान सरकार नियोक्ता तो 10 फीसदी शिक्षक या कर्मचारी द्वारा किया जाता है। हाल ही में घोषित केंद्र सरकार के बजट में एनपीएस में सरकार की ओर से दिए जाने वाले अंशदान को ही बढ़ाकर 14 फीसदी किया गया।
कितना कटा अंशदान, नहीं है कोई रिकार्ड
शिक्षकों का आरोप है कि एनपीएस के तहत होने वाले अंशदान की कटौती कितनी हो रही है। सरकार कितना अंशदान दे रही है। इनका कोई रिकार्ड उनके पास नहीं है। जबकि इसे डीआईओएस कार्यालय के लेखा विभाग के साथ साथ विद्यालय स्तर पर भी रजिस्टर या ऑनलाइन अपडेट होना चाहिए।
एनपीएस से जुड़ी किसी भी प्रकार की समस्या के निस्तारण के लिए डीआईओएस कार्यालय के लेखा विभाग में एक पटल बनाया गया है। जहां आने वाली शिकायतों का शासन के निर्देशानुसार निवारण कराया जाता है। किसी भी शिक्षक या कर्मचारी के साथ ऐसी कोई समस्या है तो लिखित प्रत्यावेदन दें पूरी मदद की जाएगी।
- ज्ञानेंद्र सिंह भदौरिया, डीआईओएस