लखनऊ: उत्तर प्रदेश के प्राथमिक विद्यालयों में 69 हजार सहायक अध्यापकों की भर्ती मामले में विवाद की स्थिति बनी हुई है। भर्ती में ओबीसी वर्ग के 6800 रिक्त पदों पर की नियुक्ति के शासनादेश को चुनौती दी गई है। कोर्ट ने मामले में सुनवाई कर जवाब मांगा है। यह आदेश न्यायमूर्ति राजीव जोशी की एकलपीठ ने प्रतीक मिश्रा की ओर से दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है।
बेसिक शिक्षा विभाग में 69 हजार सहायक अध्यापक भर्ती में 6800 पद खाली रह गए थे। इन 6800 पदों पर ओबीसी अभ्यर्थियों की नियुक्ति के खिलाफ एक अभ्यर्थी इलाहाबाद हाईकोर्ट की शरण में है। इनकी नियुक्ति के लिए पांच जनवरी 2022 को शासनादेश जारी किया गया था। हाईकोर्ट में इसी शासनादेश को चुनौती दी गई है। हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार को पूरे मामले की जानकारी उपलब्ध कराने का निर्देश दिया है।
याची के अधिवक्ता का तर्क है कि यूपी सरकार ने 16 मई 2020 को 69 हजार सहायक अध्यापक भर्ती का विज्ञापन जारी किया था। नियुक्ति प्रक्रिया पूरी हो गई। इसके बाद शासन को पता चला कि आरक्षण लागू करने में गलती हुई है। 6800 ओबीसी के पदों पर सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों का चयन कर लिया गया है।
इसके बाद शासन ने तय किया कि जिन सामान्य अभ्यर्थियों की ओबीसी की सीटों पर नियुक्ति कर ली गई है उनको निकाला नहीं जाएगा। उनकी जगह खाली पदों पर 6800 ओबीसी अभ्यर्थियों की अलग से नियुक्ति की जाएगी। इसी को लेकर पांच जनवरी 2022 को शासनादेश भी जारी कर दिया गया।
याची की ओर से तर्क दिया गया कि बिना विज्ञापन जारी किए नियुक्ति नहीं की जा सकती। याचीगण भी अर्ह अभ्यर्थी हैं और सहायक अध्यापक बनने की योग्यता रखते हैं। रिक्त पदों को सरकार बिना विज्ञापन जारी किए और नियुक्ति प्रक्त्रिस्या अपनाए नहीं भर सकती। न ही इन रिक्त पदों को पुरानी भर्ती से जोड़ा जा सकता है।