लखनऊ । सौभाग्य का लिफाफा तो शुक्रवार को शपथ ग्रहण समारोह के ऐन पहले खुलेगा, लेकिन समीकरणों ने कई विधायकों के लिए संभावनाओं के द्वार जरूर खोल दिए हैं। माना जा रहा था कि भाजपा विधायक दल की बैठक में उपमुख्यमंत्री के संबंध में स्पष्ट हो जाएगा, लेकिन ऐसी कोई घोषणा नहीं हुई। अब संशय है तो उसके बीच संभावनाएं भी हैं कि उपमुख्यमंत्री के रूप में केशव प्रसाद मौर्य और डा. दिनेश शर्मा फिर से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सहयोगी बन सकते हैं।
विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत के बाद से ही योगी आदित्यनाथ मंत्रिमंडल को लेकर तमाम अटकलें चल रही हैं। हर नाम के पीछे अपने-अपने तर्क भी हैं। इसमें सबसे अधिक चर्चा इस बात को लेकर है कि अब उपमुख्यमंत्री कौन बनेगा? चूंकि, केशव प्रसाद मौर्य चुनाव हार गए हैं, इसलिए उनकी दावेदारी कमजोर कही जाने लगी तो डा. दिनेश शर्मा को संगठन में भेजने की चर्चा चल पड़ी।
इधर, भाजपा ने चुनाव हारे पुष्कर सिंह धामी को दोबारा उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनाया तो केशव को लेकर कयास बदल गए। कहा जाने लगा कि वही फार्मूला यहां भी लागू हो सकता है, क्योंकि मौर्य संगठन का कौशल रखते हैं और पिछड़ा वर्ग के प्रमुख नेताओं में शामिल हैं।
अब अकेले उन्हें दोबारा डिप्टी सीएम बनाकर पार्टी लोकसभा चुनाव से पहले ब्राह्मण वर्ग को नाराज क्यों करना चाहेगी? इसलिए दिनेश भी दोबारा बनाए जा सकते हैं। इन तर्कों को हवा तब भी मिली, जब विधायक दल की बैठक के मंच पर दोनों को स्थान मिला और फिर सरकार बनाने का प्रस्ताव देने के लिए राजभवन गए प्रतिनिधिमंडल में भी वह शामिल रहे।
हालांकि, इस पद के दावेदारों में कई दिन से भाजपा प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह और दलित नेता के रूप में उत्तराखंड की पूर्व राज्यपाल बेबीरानी मौर्य का नाम भी चल रहा है। उपमुख्यमंत्री नहीं तो इन दोनों का कैबिनेट मंत्री बनाया जाना तय माना जा रहा है।
प्रमुख पदों में विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी भी है। अटकलें हैं कि संसदीय कार्य के अनुभवी, नौवीं बार के विधायक सुरेश खन्ना को यह दायित्व सौंपा जा सकता है, जबकि संसदीय कार्यमंत्री वरिष्ठ और अनुभवी विधायक सूर्यप्रताप शाही बनाए जा सकते हैं।
दलित और महिलाओं को संदेश के तर्क के साथ विधानसभा अध्यक्ष के रूप में भी बेबीरानी मौर्य का नाम चलाया जा रहा है, लेकिन इस तर्क को यह तथ्य कमजोर करता है कि पहली बार विधायक बनीं बेबीरानी की राह में कम अनुभव रोड़ा बन सकता है। यदि दलित को विधानसभा अध्यक्ष बनाना होगा तो पार्टी यह दांव प्रोटेम स्पीकर चुने गए अनुभवी रमापति शास्त्री पर लगा सकती है।
फिर लौटेंगे पुरानी कैबिनेट के दिग्गज : योगी सरकार के पहले कार्यकाल में मंत्री रहे स्वामी प्रसाद मौर्य, डा. धर्म सिंह सैनी और दारा सिंह चौहान को हटा दें तो ग्यारह मंत्री चुनाव हार गए हैं। केशव के अतिरिक्त किसी हारे मंत्री को दोबारा यह मौका दिए जाने की संभावना बहुत कम है, लेकिन कैबिनेट में रहे पुराने दिग्गजों की वापसी तय है। इनमें सतीश महाना, जयप्रताप सिंह, आशुतोष टंडन, श्रीकांत शर्मा, बृजेश पाठक, कपिल देव अग्रवाल, नंदगोपाल गुप्ता नंदी, जितिन प्रसाद आदि नाम हैं, जिन्हें पहले से अधिक महत्वपूर्ण विभाग दिए जा सकते हैं।
इन्हें मिल सकती मंत्रिमंडल में जगह : बड़ी जीत, महिला, युवा और जातीय समीकरण सहित कई पैमाने योगी के नए मंत्रिमंडल के गठन का आधार बनेंगे। युवाओं में पंकज सिंह, नीरज बोरा, शलभमणि त्रिपाठी, अदिति सिंह, प्रकाश द्विवेदी जैसे नाम हो सकते हैं तो विपक्षी दिग्गजों को हराने वालों में राजेश चौधरी, केतकी सिंह, दयाशंकर सिंह जैसे नाम शामिल हैं। पिछली सरकार में विधानसभा उपाध्यक्ष बनाए गए नितिन अग्रवाल अबकी मंत्री बनाए जा सकते हैं। अपना दल एस के कार्यकारी अध्यक्ष आशीष पटेल और निषाद पार्टी के अध्यक्ष डा. संजय निषाद का भी कैबिनेट मंत्री बनना तय माना जा रहा है।
असीम, राजेश्वर और एके शर्मा को भी मिलेगा मौका : कैबिनेट मंत्री की सूची में कन्नौज से जीते असीम अरुण, सरोजनीनगर विधायक राजेश्वर सिंह और एमएलसी एके शर्मा के नाम भी संभावित हैं। चूंकि मोदी सरकार में कई सेवानिवृत्त अधिकारियों को मंत्री बनाया जा चुका है, इसलिए इस फार्मूले में यह तीनों फिट बैठते हैं। एके शर्मा सेवानिवृत्त आइएएस अधिकारी, असीम सेवानिवृत्त आइपीएस अधिकारी तो राजेश्वर सिंह प्रवर्तन निदेशालय से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर राजनीति में आए हैं। इनमें असीम का दावा दलित होने के नाते भी मजबूत हो जाता है। इन तीनों को ही महत्वपूर्ण विभाग दिए जा सकते हैं।