रायबरेली बजट कम खर्च ज्यादा तो कैसे मिले बच्चों को पौष्टिक भोजन दो साल में महंगाई डेढ़ से दोगुनी बढ़ गई, लेकिन विद्यालयों में मध्याह्न भोजन योजना के तहत मिलने वाले भोजन की कन्वर्जन कास्ट पुरानी है दो साल से ज्यादा समय बीत गया, लेकिन कन्वर्जन कास्ट नहीं बढ़ाई गई। डेढ़ से दोगुनी बढ़ी महंगाई से पुरानी कन्वर्जन फास्ट से भोजन बनवाना मुश्किल हो रहा है। ऐसे में गुणवत्ता और पौष्टिकता की उम्मीद रखना बेमानी है। कहीं सामग्री में कटौती होती या फिर मानकों को नजरअंदाज किया जाता है। गेहूं और चावल की तो आपूर्ति हो जाती है, लेकिन खाना बनाने के लिए सब्जी, दाल, तेल, मसाले, दूध, फल सामग्री की भी जरूरत पड़ती है। बीते दो सालों में इन वस्तुओं के दाम काफी अधिक बढ़ गए हैं। रसोई गैस के दाम भी आसमान छ रहे हैं। बजट भी देर-सबेर आता है। ऐसे में विद्यार्थियों को पौष्टिक भोजन दे पाना मुश्किल होता जा रहा है। इसको लेकर शिक्षक और अभिभावक चिंतित हैं, लेकिन शायद इसको लेकर अधिकारी गंभीर नहीं है।
कार्रवाई का बना रहता है भय
कन्वर्जन कास्ट पर महंगाई हर रोज बढ़ रही है। ऐसे में
विद्यालयों में बच्चों को पूर्ण भोजन दिए जाने पर सवाल उठ रहे हैं। इतनी कम लागत में अच्छा भोजन कैसे दिया जा सकता है। शिक्षक भी काफी परेशान रहते हैं। उनमें कारवाई का भय बना रहता है। कंपोजिट विद्यालय के दुर्गेश सिंह, उच्च प्राथमिक विद्यालय मानपुर के रमेश बहादुर सिंह, प्राथमिक विद्यालय मानपुर के नीरज शर्मा और प्राथमिक विद्यालय रमुवापुर दुबाई की शशिबाला बताती हैं कि मध्याहन भोजन की गुणवत्ता पर ध्यान दिया जाता है। कन्वर्जन कास्ट कम है और वस्तुओं के दाम बढ़ गए हैं। कहीं कार्रवाई न हो जाए इसलिए अपनी जेब से धन लगाकर अच्छा भोजन बनाते हैं। (संवाद)