प्रयागराज।
सहायता प्राप्त अशासकीय इंटर कॉलेजों में प्रधानाचार्य की भर्ती के लिए आयोजित साक्षात्कार को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है। कहा गया है कि माध्यमिक शिक्षा चयन बोर्ड ने भर्ती में ऐसे तदर्थ अध्यापकों के अनुभव को स्वीकार किया है जिनकी नियुक्ति ही शून्य घोषित की जा चुकी है।
याचिका पर सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति सिद्धार्थ ने इस मामले में प्रदेश सरकार और चयन बोर्ड को जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। याची के अधिवक्ता अग्निहोत्री कुमार त्रिपाठी का कहना था कि सहायता प्राप्त अशासकीय इंटर कॉलेजों में प्रधानाचार्य की भर्ती के लिए 2013 में विज्ञापन जारी किया गया था। इसके पूर्व हाईकोर्ट ने अभिषेक त्रिपाठी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के केस में 2001 के बाद तदर्थ रूप से नियुक्त शिक्षकों की नियुक्ति को शून्य घोषित कर दिया था। इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दाखिल की गई। सुप्रीम कोर्ट ने भी संजय सिंह केस में प्रदेश सरकार व हाईकोर्ट के निर्णय को सही करार दिया। मगर साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी थी कि तदर्थ रूप से नियुक्त शिक्षकों की परीक्षा करा ली जाए और जो परीक्षा में सफल होते हैं उनको नियुक्ति दी जाए। इस क्रम में राज्य सरकार ने 1446 तदर्थ शिक्षकों को टीजीटी परीक्षा में शामिल किया जिनमें से मात्र 18 शिक्षक ही सफल हुए ।
याची के अधिवक्ता का कहना था कि भर्ती का विज्ञापन 2013 में जारी हुआ था। उस समय जो शिक्षक तदर्थ रूप से काम कर रहे थे उन्होंने अपनी सेवा को अपने अनुभव योग्यता में दर्शाया था ।जबकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार उनकी नियुक्ति ही शून्य घोषित की जा चुकी है। इस स्थिति में आयोग द्वारा ऐसे शिक्षकों का आवेदन रद्द करने के बजाए उनके अनुभव को स्वीकार करना गलत है ।कोर्ट ने इस मामले में सभी पक्षों को जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।