प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि योग्यता के आधार पर मृतक आश्रित नियमावली के तहत विशेष पद की मांग करने अधिकार नहीं है। यह परिवार को तात्कालिक आर्थिक संकट से उबारने की योजना है। लोक पदों पर नियुक्ति की समानता के अधिकार का अपवाद है। हाई कोर्ट ने कहा कि मृतक आश्रित के रूप में नौकरी पाना अधिकार नहीं होता, बल्कि आर्थिक तगी से तत्काल राहत देने के लिए ऐसे कानून बनाए गए हैं।
नौकरी मिलने के बाद चार मांगी फार्मासिस्ट की नौकरी
यह आदेश न्यायमूर्ति एसपी केसरवानी तथा न्यायमूर्ति जयंत बनर्जी की खंडपीठ ने इकबाल खान की एकल पीठ के निर्णय के खिलाफ दाखिल विशेष अपील को खारिज करते हुए दिया। अपील पर अधिवक्ता देवेश मिश्र व राज्य सरकार के अधिवक्ता बीपी सिंह कछवाह ने पक्ष रखा। याची अपीलार्थी ने मृतक आश्रित नियमावली के तहत नौकरी की मांग की थी। याची को फार्मासिस्ट के बजाय उसकी योग्यता के आधार पर लैब अटेंडेंट के रूप में नौकरी दी गयी। उसने इस पद पर ज्वाइन भी कर लिया। लगभग 4 साल बाद याची ने याचिका दायर कर मांग की कि उसे मृतक आश्रित के रूप में लैब अटेंडेंट की जगह फार्मासिस्ट के पद पर नौकरी दी जाए, क्योंकि कानून परिवर्तित हो गया है और अब वह इस पद की योग्यता रखता है। एकलपीठ ने निर्देश देने से इंकार करते हुए याचिका खारिज कर दी। और कहा कि उसने लैब अटेंडेंट पद पर ज्वाइन कर लिया है तथा फार्मासिस्ट का पद यूपी अधीनस्थ सेवा चयन आयोग द्वारा भरा जाने वाला पद है। इस कारण याची की योग्यता के आधार पर फार्मासिस्ट के पद पर नियुक्ति नहीं की जा सकती।
और हाई कोर्ट ने खारिज कर दी याची की विशेष अपील
एकल पीठ के इस फैसले को याची ने विशेष अपील दाखिल कर चुनौती दी थी। अपीलार्थी के वकील का कहना था कि आश्रित के रूप में नियुक्ति योग्यता के आधार पर किया जाए भले ही उसने नीचे का पद स्वीकार कर लिया हो। हाईकोर्ट की खंडपीठ ने याची की इस दलील को अस्वीकार कर दिया तथा कहा कि मृतक आश्रित के रूप में नियुक्ति मृतक के परिवार को आर्थिक तंगी से तत्काल राहत देने के लिए है। याची पहले ही नौकरी पा चुका है और लैब अटेंडेंट के पद पर काम कर रहा है। कोर्ट ने कहा कि एकल न्यायाधीश द्वारा पारित आदेश में कोई कानूनी खामी नहीं है। इस कारण याची की विशेष अपील खारिज की जाती है।