सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पाया कि याचियों की ओर से सीआरपीसी की धारा 482 के तहत पहले चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने उस याचिका पर सुनवाई करते हुए याचियों को आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया था।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गलत तरीके से अनुकूल आदेश प्राप्त करने के प्रयास को न्यायालय की कार्यवाही की पीठ में छुरा घोंपने वाला करार दिया है। कोर्ट ने इसे कदाचार की श्रेणी में माना और याची पर 50 हजार रुपये का हर्जाना लगाते हुए अदालतों को इस तरह के अनैतिक वादियों से सावधान रहने को कहा है। कोर्ट ने कहा कि ऐसे वादियों पर हर्जाना भी लगाना चाहिए। यह आदेश न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी ने गोरखपुर के सनी यादव व अन्य की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है
मामले में याचियों को गोरखपुर की जिला अदालत द्वारा बरहलगंज थाने में दर्ज रिपोर्ट के मामले में अभियोजन का सामना करने के लिए सीआरपीसी की धारा 319 के तहत बुलाया गया था। याचियों ने उसे हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। कोर्ट ने पाया कि मामले में पीड़िता ने स्पष्ट रूप से कहा था कि याचियों ने उसके साथ यौन उत्पीड़न किया था। कोर्ट ने इसे देखते हुए पुनरीक्षण याचिका को खारिज कर दिया।
याची के कृत्य को कोर्ट ने निंदनीय और अक्षम्य पाप करार दिया
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पाया कि याचियों की ओर से सीआरपीसी की धारा 482 के तहत पहले चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने उस याचिका पर सुनवाई करते हुए याचियों को आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया था। याचियों ने कोर्ट का आदेश मानने की बजाय फिर से पुनरीक्षण याचिका दाखिल कर दी।
कोर्ट ने इसे निदंनीय और अक्षम्य पाप करार दिया। कोर्ट ने कहा कि इस प्रकार की प्रथा आजकल न्यायालय में प्रचलित हो गई है। बेईमान वादी किसी भी हद तक जाकर अपने पक्ष में आदेश पाने की कोशिश में लगे रहते हैं। कोर्ट ने कहा कि इस प्रकार का कदाचार न्यायालय की कार्यवाही में पीठ की छुरा घोंपना कहा जा सकता है। कोर्ट ने अदालताें को सावधान रहने की सलाह दी और याचिका को खारिज कर दिया।