लखनऊ, । राज्य सरकार ने अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए वर्ष 2022-23 की स्थानांतरण नीति को मंजूरी दे दी है। विभागाध्यक्ष अपने मंत्री की अनुमति से 30 जून तक तबादले कर सकेंगे। जिलों में तीन साल और मंडल में सात साल की सेवा पूरी करने वाले समूह ‘क’ व ‘ख’ के अधिकारियों को हटाकर दूसरे स्थानों को भेजा जाएगा।
कैबिनेट बैठक में प्रस्ताव को मंजूरी: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में मंगलवार को हुई कैबिनेट बैठक में कार्मिक विभाग के इस प्रस्ताव को मंजूरी दी गई। नई स्थानांतरण नीति को केवल एक साल के लिए मंजूरी दी गई है। मतलब साफ है कि अगले साल के लिए अलग नीति आएगी। विभागों में तैनात समूह ‘क’ व ‘ख’ संवर्ग के कुल अधिकारियों में अधिकतम 20 फीसदी ही स्थानांतरित किए जाएंगे। समूह ‘ग’ व ‘घ’ संवर्ग में यह संख्या अधिकतम 10 फीसदी रखी गई है।
समूह ‘ख’ व ‘ग’ के कर्मियों का स्थानांतरण यथासंभव मेरिट बेस्ड ऑनलाइन व्यवस्था के आधार पर किया जाएगा। समूह ‘ग’ कर्मियों के पटल व क्षेत्र परिवर्तन के लिए 13 मई 2022 को जारी शासनादेश का कड़ाई से पालन कराया जाएगा। केंद्र सरकार द्वारा घोषित आकांक्षी और बुंदेलखंड के सभी जिलों में तैनाती करके संतृप्तीकरण की व्यवस्था की गई है।
दो सत्र रहा शून्य: कोविड काल को देखते हुए यूपी में दो सत्र यानी 2020-2021 और 2021-2022 को शून्य रखा गया। इन दोनों सत्रों में बहुत जरूरी होने पर तबादले किए गए। समूह ‘ग’ व ‘घ’ के अधिकतर कर्मचारियों के तबादले इन दोनों सत्रों में नहीं हुए। शिकायत या फिर अन्य गड़बड़यिों पर इन्हें हटाया गया। नई नीति आने से एक ही स्थान पर सालों से जमे कर्मियों को हटाने का रास्ता साफ हो गया है।
तय अवधि के बाद सीएम की अनुमति जरूरी: नई नीति में विभागाध्यक्षों को मंत्री की अनुमति पर 15 दिनों तक तबादला करने का अधिकार दिया गया है। ऐसा माना जा रहा है कि इस समय-सीमा को आगे चलकर कुछ विस्तार दिया जा सकता है। इसके बाद अफसरों के तबादले मुख्यमंत्री की अनुमति पर होंगे।
रजिस्ट्रियों पर स्टांप शुल्क अनिवार्य
सभी प्रकार की रजिस्ट्रियों पर सर्किल रेट के आधार पर स्टांप शुल्क लेने की व्यवस्था है। इसके चलते परिवार के सदस्य बहुत जरूरी होने पर ही संपत्तियों की रजिस्ट्री कराते हैं, जिससे उन्हें स्टांप शुल्क न देना पड़े। इसको लेकर कई बार विवाद की स्थिति भी पैदा हो जाती है।