वित्त और कार्मिक विभाग ने यह साफ कर दिया गया है कि पेंशन के लिए तदर्थ सेवाओं को मनमाने तरीके से अर्हकारी सेवा नहीं माना जाएगा। विभागों को इस संबंध में विस्तृत निर्देश भेजा गया है। कुछ उदाहरण भी दिए गए हैं, जिसमें विभाग का पक्ष रखने के बाद फैसला बदल गया। विभागों को निर्देश दिया गया है कि इस संबंध में मामले हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जो मामले चल रहे हैं, ऐसे मामलों में एक साथ सुनवाई कराने के लिए महाधिवक्ता की मदद ली जाए। इससे सभी मामलों में एकरूपता रहेगी और मनमाने तरीके से किसी को लाभ नहीं मिलेगा।
लखनऊ। तदर्थ सेवाओं को मनमाने तरीके से पेंशन के लिए अर्हकारी सेवा नहीं माना जा सकेगा। उन्हीं सेवाओं को ही इसके लिए आधार माना जाएगा जो वास्तविक होगी। यही नहीं हाईकोर्ट या फिर अन्य किसी न्यायालय में इस तरह के मामले चल रहे हैं तो विभाग अपना पक्ष मजबूती से रखेंगे इसके लिए महाधिवक्ता की मदद ली जाएगी।
तदर्थ सेवा को लेकर विवाद: प्रदेश के सरकारी विभागों में समय-समय रिक्त होने वाले पदों पर तदर्थ भर्ती की व्यवस्था थी, लेकिन वर्ष 2000 में इस पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई। इसके बाद भी शिक्षकों या फिर अन्य कुछ विभागों में रिक्त होने वाले पदों पर जुगाड़ के सहारे तदर्थ भर्तियां कर ली गईं और कोर्ट के सहारे वेतन निकाल लिया गया। कुछ विभागों में तदर्थ पर नियुक्त होने वालों को तो स्थाई कर दिया गया, लेकिन कुछ में नहीं किया गया। जिन्हें स्थाई कर दिया गया है वे चाहते हैं कि उन्हें पुरानी पेंशन का लाभ मिल जाए। इसीलिए वर्ष 2005 से पूर्व की सेवाओं को पेंशन के लिए अर्हकारी सेवा मानने को लेकर न्यायालयों में वाद चल रहा है। इस विवाद के चलते विभाग समय-समय पर वित्त और कार्मिक विभाग से राय मांगते रहते हैं।