जानकारियों के लेन-देन का सिलसिला ऑनलाइन चलने लगा है, जिसके कारण शिक्षक मोबाइल एप के मकड़जाल में उलझकर रह गए हैं. शिक्षकों के स्मार्ट फोन में करीब दर्जनभर एप डाउनलोड हैं, इसके बाद भी कई पोर्टल में भी जाकर जानकारियां जुटानी और भेजनी पड़ रही है, जिससे पढ़ाने के अलावा अन्य कार्यों में शिक्षकों का समय खप रहा है।…शिक्षा गुणवत्ता बढ़ाने के नाम पर हर साल नया प्रयोग से शिक्षा विभाग अब प्रयोगशाला बनकर रह गया है. शिक्षकों को पहले से ही पढ़ाने के अलावा शासन के कई योजनाओं में सहयोगी रखा गया है और अब जानकारियों के आनलाइन होने के बाद कई तरह के एप से उलझना पड़ रहा है।
एक आम शिक्षक के मोबाइल पर करीब दर्जनभर एप शिक्षा विभाग से जुड़े डाउनलोड हैं. इसके बाद भी कई जानकारियों के लिए शिक्षकों को विभागीय पोर्टल पर जाना पड़ता है, तो कई जानकारियां प्रेषित करने भी पोर्टल का सहारा है, जिससे शिक्षक स्कूलों में पढ़ाने के लिए समय निकालने की जुगत भिड़ा रहे हैं, ताकि वे अपने मूल कार्य के प्रति कुछ तो न्याय कर सकें. वहीं किसी शिक्षक के पास अन्य प्रभार है, तो उसके लिए अलग मोबाइल एप है. प्राचार्य, प्रधानपाठक, संकुलों में प्रभार के साथ शिक्षक वोटर आईडी बनाने में ही कई तरह के मोबाइल एप का सहारा ले रहे हैं।
इस तरह देखा जाए तो शिक्षकों के स्मार्ट फोन में दर्जनों तरह के एप भरे पड़े हैं. शिक्षकों को अपनी व्यक्तिगत जानकारी से लेकर वेतनपत्रक तक के लिए मोबाइल एप या पोर्टल का ही सहारा लेना पड़ता है और समय-समय पर जानकारियों को अपडेट करना पड़ता है. इन एप में प्रमुख रूप से संपर्क फाउंडेशन, सरल कार्यक्रम का जीपी एप, अंगना म शिक्षा कार्यक्रम, सौ दिन सौ कहानी, नवाजतन, एमडीएम एपशामिल है, जिसमें से ज्यादातर प्रतिदिन के उपयोग में हैं।
अब मध्यान्ह भोजन की जानकारी एप पर
प्रायमरी व मिडिल स्कूलों में बच्चों को मध्यान्ह भोजन प्रदान किया जाता है. इससे संबंधित जानकारी अब तक शिक्षक रजिस्टर में रखते थे और मासिक जानकारी भेजते रहे हैं, लेकिन अब विभाग द्वारा एमडीएम की जानकारी भी प्रतिदिन एप के माध्यम से भेजना अनिवार्य किया गया है. इस तरह के विभिन्न एप में उलझे शिक्षकों के पास पढ़ाने के लिए ही समय नहीं बच रहा है
वाट्सएप व टेलीग्राम में दर्जनों ग्रुप
विभाग द्वारा एप का निर्माण किया जा रहा है. साथ ही शिक्षकों को कई तरह की जानकारी संकुल स्तर से वाट्सएप व टेलीग्राम पर बने विभिन्न ग्रुप के माध्यम से प्रदान किया जा रहा है. इसके चलते शिक्षक वाट्सएप व टेलीग्राम पर दर्जनों ग्रुप से जोड़े गए हैं और सभी में कई तरह की जानकारियां भेजी जा रही है, जिससे शिक्षकों को सभी ग्रुप को भी प्रतिदिन देखना पड़ता है, जिसमें भी समय की बरबादी हो रही है।
प्रदेश में कुल 67 डायट और लगभग 3100 निजी संस्थानों में डीएलएड (पूर्व में बीटीसी) के दाखिले होते हैं। इसमें कुल मिलाकर लगभग 2 लाख 41 हजार सीटें हैं। डायट में कुल 10.600 सीटें हैं। जबकि प्रदेश के निजी संस्थानों में लगभग 2 लाख 32 हजार सीटें हैं। आलम यह है कि कभी नौकरी की गारंटी माने जाने वाले इस कोर्स की पढ़ाई से छात्र कतरा रहे हैं। सत्र 2021-22 में स्थिति यह रही कि प्रदेश के 106 निजी कॉलेजों को एक भी छात्र नहीं मिला। सैकड़ों कॉलेजों को तो बमुश्किल एक दर्जन छात्र भी नहीं मिले। परिणामस्वरूप लगभग 1.32 लाख सीटें खाली रह गईं। ऐसे में इन कॉलेजों के प्रबंध तंत्र के सामने शिक्षकों और कर्मचारियों को वेतन देने के लाले पड़ गए।
बीते सत्र में सीटों के सापेक्ष कम आवेदन आने की वजह से आवेदन की तिथि तीन बार बढ़ाई गई लेकिन आवेदन नहीं बढ़े। इससे पहले का सत्र कोरोना की वजह से शून्य घोषित हो गया था। इसी तरह सत्र 2017-18 में डीएलएड की कुल सीटो 2.11 लाख के सापेक्ष 1.92 लाख ने दाखिला लिया था। फिर लगातार कोर्स का क्रेज घटता गया जबकि इससे पहले डीएलएड में दाखिले के लिए मारामारी मची रहती थी। डीएलएड का दायरा सीमितः डीएलएड कर चुके पंकज मिश्र का कहना है कि डीएलएड के लिए दायरा सीमित कर दिया गया है। डीएलएड प्रशिक्षण प्राप्त अभ्यर्थी केवल प्राथमिक स्कूलों में आवेदन कर सकते हैं। वहीं 2018 में एनसीटीई ने बीएड को भी प्राथमिक शिक्षक भर्ती के लिए मान्य कर दिया। बीएड के बाद प्राइमरी से लेकर इंटर कॉलेज के अतिरिक्त बीईओ समेत अन्य कई नौकरियों के लिए भी आवेदन किया जा सकता है। डीएलएड प्रशिक्षण प्राप्त प्रतियोगी छात्र आलोक बिलौरा कहते हैं, चार वर्ष पहले प्राइमरी में शिक्षक भर्ती आई थी, तब से नहीं आई। ऐसे में डीएलएड की अपेक्षा बीएड करना ज्यादा मुनासिब है।