लखनऊ। राजकीय इंटर कॉलेजों में अतिरिक्त शिक्षकों के समायोजन की चल रही प्रक्रिया में विभाग वर्ष 1976 की व्यवस्था को अपना रहा है। उस समय 60 बच्चों पर एक शिक्षक की तैनाती की व्यवस्था थी, लेकिन आरटीई में 35 बच्चों पर एक शिक्षक रखने की व्यवस्था है। ऐसे में शिक्षक संगठन ने सवाल उठाया है कि छात्र- शिक्षक अनुपात कैसे तय होगा ?
राजकीय शिक्षक संघ की अध्यक्ष छाया शुक्ला बताती हैं कि विभाग खाली पद भरने की बजाय शिक्षकों को इधर-उधर कर रहा है। समायोजन से पहले यह घोषित किया जाना चाहिए कि अतिरिक्त शिक्षकों को कैसे चिह्नित किया जाए। वर्ष 1976 के बाद से कई बदलाव हुए हैं। उन बदलाओं का समायोजन में पालन कैसे होगा? यह स्पष्ट नहीं है। उन्होंने कहा कि कुछ विद्यालय ऐसे हैं जहां कुछ विषयों में बच्चों की संख्या एक शिक्षक के अनुपात लायक भी नहीं। वहीं कुछ जगह किसी विषय में छात्र ज्यादा व शिक्षक कम हैं। अगर बच्चे कम होने पर किसी विषय से शिक्षक हटाए जाएंगे तो क्या उस विषय की पढ़ाई भी बंद
कर दी जाएगी। उन्होंने कहा कि यह स्थितियां स्पष्ट होनी चाहिए।
सभी मानकों को देखने के बाद संख्या तय होगी
अपर शिक्षा निदेशक केके गुप्ता का कहना है कि समायोजन 1976 के शासनादेश के अनुसार किया जा रहा है। सिर्फ छात्र संख्या को ही क्यों आधार बनाया जा रहा है, विषयों को पढ़ाने से भी तो शिक्षकों की संख्या तय हो सकती है। उन्होंने कहा कि प्रवक्ता को रोजाना पांच व एलटी ग्रेड शिक्षक को छह पीरियड पढ़ाने की व्यवस्था है। इन सभी मानकों को देखने के बाद अतिरिक्त शिक्षकों की संख्या तय होगी