प्रयागराज। जीतूंगा मैं, यह खुद से वादा करो, जितना सोचते हो, कोशिश उससे ज्यादा करो, तकदीर भी रूठे पर हिम्मत न टूटे, मजबूत इतना अपना इरादा करो.. कुछ इसी तरह के इरादों से पेंशन की लड़ाई लड़ रहे बुजुर्ग सिद्धार्थ घोष को आखिरकार 22 साल बाद जीत मिल ही गई। हालांकि अभी एरियर भुगतान के लिए उनकी लड़ाई जारी है।
साउथ मलाका निवासी सिद्धार्थ घोष ने शहर की एक निजी कंपनी में नौकरी करने के बाद सन 2000 में वीआरएस ले लिया था। कंपनी का हेड ऑफिस कोलकाता में था। वीआरएस लेते ही कंपनी ने ग्रेच्युटी और फंड का भुगतान कर दिया। वीआरएस के वक्त उनकी आयु 45 साल थी। कंपनी ने आश्वासन दिया था कि पांच साल बाद जब वह 50 वर्ष के होंगे तो पेंशन शुरू हो जाएगी। तय समय सीमा के बाद भी पेंशन चालू नहीं हुई तो बुजुर्ग ने कोलकाता ईपीएफओ दफ्तर में संपर्क किया। बताया गया कि अभी उनकी नौकरी से जुड़े दस्तावेज में कुछ कमी है, जिसको ठीक कराया जा रहा है। अभी समय लगेगा। इस दौरान बुजुर्ग कोलकाता में अपने परिचितों के जरिए बीच-बीच में विभाग से संपर्क करते रहे लेकिन उनकी पेंशन की कोई सुनवाई नहीं हुई।
एक बार फिर साल 2018 में उन्होंने विभाग को पत्र लिखकर पूछा तो बताया गया कि इस नाम का कोई रिकॉर्ड दफ्तर में मौजूद नहीं है इसलिए पेंशन जारी नहीं की जा सकती है। इसके बाद बुजुर्ग ने शहर में फंड पेंशन की समस्याओं के निदान के लिए काम करने वाली संस्था रिटायरमेंट इंडिया फाउंडेशन के अध्यक्ष राज गुलाटी की मदद से पैरवी तेज कर दी। साल 2022 की शुरुआत में ईपीएफओ कोलकाता की ओर से उन्हें पत्र भेजा गया कि आपके पेपर मिल गए हैं। उन्हें प्रयागराज के लीडर रोड स्थित ईपीएफओ ऑफिस को भेज दिया गया है, वहां सम्पर्क करें। तमाम लिखा-पढ़ी के बाद इस माह उन्हें जुलाई की पेंशन मिली है।