बोर्ड से मान्यता लेने वाले स्कूलों को हाईस्कूल एवं इंटरमीडिएट परीक्षा में कम से कम 50 प्रतिशत परिणाम रखना होगा। पहले 50 प्रतिशत परिणाम की बाध्यता का प्रावधान नहीं था। इस वजह से खराब रिजल्ट वाले स्कूलों के खिलाफ ठोस कार्रवाई नहीं हो पाती थी।
● यूपी बोर्ड ने नई मान्यता शर्तों में बंद किए मदद के सारे रास्ते।
● नई मान्यता वाले निजी स्कूलों को अपने स्रोतों से देना होगा वेतन।
● पूर्व में वित्तविहीन स्कूलों को ग्रांट-इन-एड पर ले लेती थी सरकार।
● शिक्षकों और कर्मचारियों को मिलने लगता था सरकारी वेतन।
● अब इन स्कूलों के सहायता प्राप्त विद्यालय बनने का रास्ता बंद।
प्रयागराज, । यूपी बोर्ड ने मान्यता शर्तों में बदलाव करके वित्तविहीन स्कूलों को सरकारी मदद के सारे रास्ते बंद कर दिए हैं। पहले वित्तविहीन स्कूलों को सरकार ग्रांट-इन-एड पर ले लेती थी लेकिन अब जो बदलाव किए गए हैं उनके अनुसार स्कूलों को अपने निजी स्रोतों से ही सारे खर्च वहन करने पड़ेंगे। संशोधित शर्तों में साफ लिखा है कि-‘विद्यालय संचालन हेतु आवर्तक एवं अनावर्तक व्यय भार निजी स्रोतों से वहन करने का प्रबंध समिति का प्रस्ताव प्रस्तुत करना अनिवार्य होगा।’
इंटरमीडिएट एक्ट 1921 की धारा सात के अंतर्गत वित्त विहीन स्कूलों को जो मान्यता दी जाती थी, वह खत्म कर दी गई है। इस धारा के अंतर्गत ही वित्त विहीन स्कूल आगे चलकर ग्रांट-इन-एड पर आ जाते थे। छात्र-छात्राओं से लिए जा रहे शिक्षण शुल्क का लेखाजोखा स्कूल को रखना होगा और शिक्षण शुल्क का कम से कम 70 प्रतिशत शैक्षिक एवं अन्य कमियों के परिलब्धियों (वेतन आदि) पर खर्च करना होगा। यही नहीं नई मान्यता लेने वाली संस्था को शैक्षिक कर्मियों/शिक्षणेत्तर कर्मियों की सेवा शर्तों एवं परिलब्धियों का अनुपालन राज्य सरकार की व्यवस्था के अनुसार करना होगा तथा बैंक के माध्यम से सीधे इनके खाते में वेतन भुगतान किया जाएगा। विद्यालय को अपनी समस्त आय-व्यय का ऑडिट चार्टर्ड एकाउंटेन्ट से कराना होगा जिसकी रिपोर्ट हर साल जिला विद्यालय निरीक्षक को प्रस्तुत करनी होगी।