शाहजहांपुर। जिले के सबसे अच्छे परिषदीय स्कूलों में प्राथमिक स्कूल हथौड़ा द्वितीय का नाम सबसे पहले लिया जाता है। ऐसा सुखमीत कौर की मेहनत के बलबूते हो सका है। सुखमीत ने स्कूल को बेहतर बनाने में विभागीय धनराशि का इंतजार नहीं किया, बल्कि अपने वेतन से स्कूल की सूरत बदल दी। शैक्षिक गुणवत्ता के साथ खेलकूद में छात्रों को निपुण बनाया।
वर्ष 2003 में सुखमीत कौर को हथौड़ा के प्राथमिक विद्यालय द्वितीय में सहायक अध्यापक के तौर पर तैनाती मिली थी। उस समय स्कूल की हालत काफी खराब थी। स्कूल में जर्जर कमरे थे। बच्चों को पेड़ के नीचे बैठकर पढ़ाया जाता था। स्कूल में बिजली का कनेक्शन नहीं था। बच्चों के लिए ड्रेस व म्यूजिक सिस्टम की उपलब्धता भी नहीं थी। सुखमीत खुद कॉन्वेंट स्कूल से पढ़कर आईं थीं, इसलिए उन्हें इस स्कूल की दुर्दशा देखी नहीं गई। उन्होंने छोटी-छोटी चीजों को अपने वेतन से पूरा किया।
उस समय बच्चों की संख्या भी काफी कम थी। सुखमीत ने अपने स्तर से घर-घर जाकर लोगों से संपर्क किया। उनके प्रयास से छात्र संख्या में इजाफा हो गया। सुखमीत ने स्कूल की दीवारों को सही कराते हुए रंग-रोगन कराया। 2010 में प्रधानाध्यापक बनने के बाद उन्होंने शैक्षिक गतिविधियों से विद्यालय को शीर्ष पर पहुंचाया। स्काउट-गाइड की कब-बुलबुल का गठन कर तीन साल में जिला टॉप का खिताब स्कूल के नाम कर लिया। निजी रुपयों से वाद्ययंत्र खरीदकर बच्चों को गीत, नृत्य, नाटक में दक्ष बनाया।
इनाम की राशि से बच्चों के लिए बनवाया फर्नीचर
प्राथमिक स्कूल हथौड़ा द्वितीय की शिक्षा का स्तर भी उच्च कोटि का है। 2015 में मॉडल स्कूल का दर्जा मिल गया। बेस्ट स्कूल का खिताब जीतने पर उन्हें एक लाख, 20 हजार रुपये का इनाम मिला। सुखमीत ने इस राशि को बच्चों के लिए फर्नीचर खरीदने में खर्च किया। सुखमीत कहती हैं कि हर बच्चे की चाहत होती है कि वह कुर्सी-मेज पर बैठकर पढ़ाई करे।
स्थान के अभाव में अब प्रवेश लेना बंद किया
इंग्लिश मीडियम स्कूल हथौड़ा द्वितीय की शिक्षा का स्तर इतना बेहतर है कि आसपास के बच्चों ने निजी स्कूलों से नाम कटवाकर इस स्कूल में लिखवाने को उत्साहित रहते हैं। सुखमीत ने बताया कि वर्तमान में उनके स्कूल में छात्र संख्या 525 है। स्थान का अभाव होने के कारण अब प्रवेश लेना बंद कर दिया है।
ये मिले पुरस्कार
2020-21 में राज्यपाल पुरस्कार
2016 में बेस्ट स्कूल अवार्ड
बेस्ट टीचर का अवार्ड भी मिला।
जब हमने स्कूल में तैनाती पाई थी। तब हालात बहुत खराब थे। अपनेे रुपये खर्च किए। विभाग से सहायता लेकर बेहतर स्कूल बनाया। 2010 से स्कूल में प्रधानाध्यापक बनने के बाद कई बड़े बदलाव किए हैं। दो साल से कंपोजिट स्कूल हो गया है। शिक्षा का स्तर बेहतर होने के कारण बच्चे निजी स्कूलों से नाम कटवाकर उनके स्कूल में प्रवेश लेने आते हैं। – सुखमीत कौर, प्रधान अध्यापिका