नई दिल्ली, । सुप्रीम कोर्ट ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लोगों को दाखिले तथा नौकरियों में 10 प्रतिशत आरक्षण देने के फैसले पर सुनवाई के लिए चार व्यापक मुद्दे तय किए हैं। शीर्ष अदालत इन पर फैसला लेगी। अदालत यह भी तय करेगी कि क्या संविधान (103वां संशोधन) अधिनियम के जरिये राज्यों को इस प्रकार के विशेष प्रावधान करने की मंजूरी देकर संविधान की मूल संरचना के सिद्धांत का उल्लंघन किया गया है अथवा नहीं। सुनवाई 13 सितंबर से सुनवाई शुरू होगी।
मुख्य न्यायाधीश उदय उमेश ललित की अध्यक्षता वाली पांच जज की संविधान पीठ ने कहा कि अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने जिन चार मुद्दों को निर्णय के लिए सामने रखा है, उनमें आरक्षण देने संबंधी निर्णय की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं से जुड़े सभी पहलू समाहित हो गए हैं। पीठ में जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, एस रवींद्र भट्ट, बेला एम. त्रिवेदी और जेबी पारदीवाला भी शामिल हैं। पीठ ने कई वकीलों द्वारा तैयार किए गए मुद्दों पर विचार किया और इसके बाद वेणुगोपाल के प्रश्नों को महत्वपूर्ण प्रश्न मानने का निर्णय लिया।
मुख्य न्यायाधीश ने इस मामले में हस्तक्षेप करने वाले राज्यों मध्य प्रदेश, असम और महाराष्ट्र से लिखित में बहस देने को कहा। अदालत ने उन्हें आश्वस्त किया कि उन्हें भी बहस का मौका दिया जाएगा। पीठ को बताया गया था कि पक्षकारों के वकीलों को दलील रखने में करीब 18 घंटे का समय या पांच कार्य दिवस लगेंगे। पीठ ने यह स्पष्ट कर दिया था कि वह 40 याचिकाओं से मुद्दों के निर्धारण करने के बाद सुनवाई शुरू करेगी।
केंद्र सरकार की ओर से पैरवी अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल तथा एसजी तुषार मेहता कर रहे हैं। केन्द्र सरकार का कहना है कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने वाला उसका कानून सामाजिक समानता को बढ़ावा देने के लिए लाया गया है, जिसके तहत उन लोगों को उच्च शिक्षा और रोजगार में समान अवसर मुहैया कराए गए हैं जो अपनी गरीबी के चलते पिछड़ गए हैं।