अभिरक्षा तय करने में बच्चे का हित हो सर्वोच्च प्राथमिकता
प्रयागराज,। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि नाबालिग बच्चे की अभिरक्षा का निर्णय करते समय न्यायालय के समक्ष बच्चे का हित देखना सर्वोच्च प्राथमिकता होती है। ऐसा करने में कोई कानून न्यायालय पर बाध्यकारी नहीं है। इसी के साथ कोर्ट ने अपनी मां से अलग पिता के साथ रह रहे सात साल के ग्रंथ वर्मा की अभिरक्षा उसकी मां को देने के संबंध में दाखिल याचिका खारिज कर दी है। साथ ही कहा कि बच्चा अपने पिता के साथ खुश है और उसका पालन पोषण भी अच्छे से हो रहा है इसलिए जब तक इस संबंध में कोई सक्षम न्यायालय विपरीत आदेश न करे, उसे उसके पिता के साथ ही रहने दिया जाए ।
यह निर्णय न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने ग्रंथ वर्मा की ओर से उसकी मां आंसी वर्मा की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर दिया है। बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में मां ने आरोप लगाया था कि उस उसके बेटे ग्रंथ वर्मा का पिता गौरव वर्मा ने अपहरण कर लिया है। मांग की गई कि बच्चे को उसके पिता की कस्टडी से छुड़ाकर मां की सुपुर्दगी में दिया जाए। माता व पिता विवाद के कारण अलग-अलग रह रहे हैं। कोर्ट के आदेश पर पुलिस ने सात साल के ग्रंथ वर्मा को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया। कोर्ट ने ग्रंथ वर्मा से सामान्य ज्ञान के कुछ प्रश्न पूछे, जिसका उसने बड़ी बुद्धिमत्ता से जवाब दिया। बच्चा अपने पिता के साथ खुश था लेकिन उसने कोर्ट के सामने इच्छा जताई कि वह अपने माता-पिता व छोटे भाई के साथ एक परिवार की तरह रहना चाहता है। उसने कहा कि वह अपने मम्मी पापा का हाथ पकड़कर अपने घर जाना चाहता है।
कोर्ट ने कहा कि बच्चे की अभिरक्षा का निर्णय करते समय न्यायालय पैरेंट्स एंड गार्जियन के विधिक अधिकारों से बंधा नहीं है ऐसे मामलों में बच्चे का हित सर्वोच्च प्राथमिकता होती है। बच्चे से बात करने पर ऐसा लगा कि उसकी देखभाल अच्छे से हो रही है और वह अच्छे स्कूल में पढ़ रहा है। कोर्ट ने बच्चे को उसके पिता के पास ही रहने देने का आदेश देते हुए कहा कि मां अपने बेटे से प्रत्येक रविवार को मिल सकती है और पिता ऐसा करने से उसे रोकेगा नहीं। कोर्ट ने माता-पिता को यह भी नसीहत दी कि वह बच्चों के सामने झगड़ा नहीं करेंगे। साथ ही बच्चों के हित व भविष्य को देखते हुए आपसी विवाद सुलझाने का प्रयास करेंगे।