संतकबीरनगर। जिले के बखिरा क्षेत्र के भवानीगाड़ा निवासी 27 वर्षीय विनोद कुमार गुप्ता परास्नातक, बीएड, टेट, सीटेट और ट्रिपल सी उत्तीर्ण हैं। शिक्षक बनना चाहते हैं। भर्ती निकल नहीं रही है। घर की माली हालत ठीक नहीं होने से वह किराए पर लेकर ई-रिक्शा चलाने लगे हैं। अपने ई-रिक्शे पर उन्होंने अपनी डिग्रियों को लिखवा लिया है। उनका कहना है कि इससे लोग सम्मानजनक व्यवहार करते हैं।
विनोद कहते हैं कि काम कोई छोटा-बड़ा नहीं होता, लेकिन जो जिसके योग्य हो, उसे वह काम मिलना चाहिए। विनोद को शिक्षकों के लिए भर्ती निकलने का बेसब्री से इंतजार है। उन्होेंने बेसिक शिक्षा राज्य मंत्री से मांग की है कि परिषदीय स्कूलों में रिक्तियां भरने की प्रक्रिया जल्द शुरू कराएं, ताकि उनके जैसे शिक्षित युवकों को नौकरी मिल सके।
विनोद कुमार गुप्ता दो भाई और दो बहनों में सबसे बड़े हैं। उनके पिता के पास चार बीघा खेती है। पिता खेती करते हैं, लेकिन पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे हैं। विनोद बताते हैं कि उन्होंने वर्ष 2018 में परास्नातक, 2021 में बीएड, टेट, सीटेट और 2013 में ट्रिपल सी उत्तीर्ण किया है। तभी से शिक्षक भर्ती की प्रक्रिया शुरू होने का इंतजार कर रहे हैं।
कोचिंग करके नहीं हुआ गुजारा
विनोद पहले छोटे बच्चों को कोचिंग और एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाते थे, लेकिन प्रतिमाह 2500 से 3000 रुपये मिलते थे। इससे घर का खर्च चलाना मुश्किल हो गया, तो कुछ और करने की सोची और ई-रिक्शा चलाने लगे। उनकी एक बहन की शादी हो गई है। दूसरी बहन की शादी करनी है। छोटा भाई मनोज गुप्ता एक हाथ से दिव्यांग है। हाईस्कूल तक ही पढ़ा है।
दो सौ किराया देने के बाद मुश्किल से बचते हैं दो सौ रुपये
विनोद के पड़ोसी के पास ई-रिक्शा है। पिछले तीन महीने से विनोद पड़ोसी का ई-रिक्शा किराए पर लेकर चला रहे हैं। ई-रिक्शा मालिक को प्रतिदिन 200 रुपये देते हैं। इसके बाद मुश्किल से 200 रुपये प्रतिदिन बचते हैं। इसी से परिवार का गुजारा होता है। अपने लिए प्रतियोगी परीक्षा की पुस्तकें आदि भी खरीदते हैं। विनोद ने बताया कि ई-रिक्शा पर डिग्रियां इसलिए लिखवा रखी हैं ताकि जो सवारी आए, वह उन्हें सम्मान दे। परिवार में बड़ा होने की वजह से सभी की उम्मीदें उन्हीं से हैं।
टीजीटी के लिए किया है आवेदन
टीजीटी की भर्ती प्रक्रिया शुरू हुई, तो आवेदन किए हैं। परिषदीय स्कूल में भर्ती प्रक्रिया शुरू होने का इंतजार हैं। विनोद की कोशिश है शिक्षक जरूर बनें। वह कहते हैं कि जब तक अपने मकसद में सफल नहीं हो जाएंगे तब तक ई-रिक्शा चलाते रहेंगे। उन्होंने मन बनाया है कि बैंक से ऋण लेकर खुद का ई-रिक्शा खरीदेंगे, ताकि आमदनी बढ़ा सकें।