नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकारी नीतियों का लाभ लक्षित समूहों तक पहुंचना सुनिश्चित करने के लिए आर्थिक मानदंड गैरकानूनी नहीं है। यह वर्गीकरण के मान्य आधार पर है। सुप्रीम कोर्ट ने यह मामला मौखिक टिप्पणी आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) को नौकरियों और दाखिलों में 10 फीसदी आरक्षण देने के केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान की।
चीफ जस्टिस यूयू ललित की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ को याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने बताया, ईडब्ल्यूएस आरक्षण का एकमात्र मानदंड किसी परिवार की वित्तीय स्थिति का होना असांविधानिक है, क्योंकि संविधान के तहत इस तरह का आरक्षण गरीबी उन्मूलन योजना का हिस्सा नहीं है। उन्होंने कहा, ईडब्लयूएस आरक्षण पूरी तरह से अनुचित, मनमाना, अवैध और असांविधानिक है। यह इंद्रा स्वाहाणे या मंडल के फैसले को सरकार द्वारा खारिज करने की कोशिश है। इन फैसलों में कहा गया था कि किसी को आरक्षण देने का एकमात्र मानदंड आर्थिक आधार नहीं हो सकता है।
वर्गीकरण के लिए एक उचित आधार का हिस्सा
पीठ में जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस एस रविंद्र भट, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पारदीवाला भी शामिल हैं। सुनवाई के दौरान पीठ ने टिप्पणी की कि सरकार ने आर्थिक मानदंडों के आधार पर नीतियां बनाई, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ऐसी नीतियों का लाभ लक्षित लोगों तक पहुंचे। आर्थिक मानदंड एक जायज आधार है और वर्गीकरण के लिए एक उचित आधार का हिस्सा है। यह गैरकानूनी नहीं है।