जमानत के लिए अभियुक्त का भौतिक अभिरक्षा में होना जरूरी नहीं हाईकोर्ट
प्रयागराज,। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि जमानत अर्जी दाखिल करते समय अभियुक्त का भौतिक रूप से अभिरक्षा में होना अनिवार्य नहीं है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि अभियुक्त भौतिक अभिरक्षा से बाहर है लेकिन उसकी स्वतंत्रता न्यायालय से अधिरोपित शर्तों के अधीन है यानी अभियुक्त कंस्ट्रक्टिव कस्टडी में है तो वह नियमित जमानत के लिए अर्जी दे सकता है।
यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ विद्यार्थी ने नोएडा के जितेंद्र उ़र्फ जितेंद्र कुमार सिंह की जमानत अर्जी पर वरिष्ठ अधिवक्ता अनूप त्रिवेदी के तर्कों को सुनने के बाद दिया। जितेंद्र के खिलाफ नोएडा के सेक्टर 39 थाने में दो मई 2021 को आईपीसी की धारा 420 व 120 बी के तहत सीएमएस इन्फो सिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड की ओर से एफआईआर दर्ज कराई गई। जमानत अर्जी पर सुनवाई के दौरान कंपनी के अधिवक्ता ने प्रारंभिक आपत्ति करते हुए कहा कि याची 21 जून 2021 को गिरफ्तार किया गया और 25 जून 2021 को पैरोल पर रिहा हो गया। याची वर्तमान में अभिरक्षा में नहीं है इसलिए उसकी जमानत अर्जी पोषणीय नहीं है। अधिवक्ता ने अपने तर्कों के समर्थन में निरंजन सिंह बनाम प्रभाकर राजाराम खरोटे और संदीप कुमार बाफना बनाम स्टेट ऑफ महाराष्ट्र में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का उदाहरण प्रस्तुत किया। कोर्ट ने कई न्यायिक निर्णयों का अवलोकन करने के बाद कहा कि जमानत का आवेदन करते समय अभियुक्त का अभिरक्षा में होना जरूरी है लेकिन उसका भौतिक रूप से अभिरक्षा में होना अनिवार्य नहीं है। यदि अभियुक्त पैरोल या अंतरिम जमानत पर है तो इसका अर्थ है कि वह न्यायालय से अधिरोपित शर्तों के अधीन है। इसलिए यह माना जाएगा कि अभियुक्त न्यायालय की कंस्ट्रक्टिव कस्टडी में है। इस स्थिति में उसका भौतिक रूप से अभिरक्षा में होना जरूरी नहीं है। इसी के साथ कोर्ट ने आपत्ति खारिज कर दी।
मामले के तथ्यों के अनुसार इंफोसिस्टम प्राइवेट लिमिटेड बैंक ऑफ बड़ौदा के एटीएम में नकदी डालने और निकालने का काम करती है। कंपनी की ओर से दो मई 2021 को तीन कर्मचारियों दीपेंद्र कुमार, सूरज सिंह और आयुष के खिलाफ बीएनए मशीन से रकम निकालकर लगभग 26 लाख 63 हजार पांच सौ रुपये का गबन करने के आरोप में एफआईआर दर्ज कराई गई। याची पर आरोप है कि निकाली गई रकम का कुछ हिस्सा उसके बैंक अकाउंट में जमा किया गया।