साक्षर भारत मिशन के तहत संविदा पर रखे गए प्रदेशभर के एक लाख शिक्षा प्रेरकों के हाईकोर्ट पहुंच गई है। मानदेय की लड़ाई हाइक हाईकोर्ट और लखनऊ खंडपीठ में याचिकाएं दायर की हैं जिसको लेकर सरकार ने अपनी तैयारी भी शुरू कर दी है।
साक्षरता, वैकल्पिक शिक्षा, उर्दू एवं प्राच्य भाषा विभाग के निदेशक गणेश कुमार ने बेसिक शिक्षा अधिकारियों को 23 सितंबर को पत्र लिखकर शिक्षा प्रेरकों के संबंध में रिपोर्ट मांगी है।
सरकार की ओर से प्रतिशपथ पत्र दाखिल करने से पहले निदेशक ने पूछा है कि योजना के तहत कितने निरक्षरों को चिह्नित किया गया और कितने चिह्नित व्यक्तियों को साक्षर किया गया। साथ ही शिक्षा प्रेरकों के कार्यों की सत्यापित रिपोर्ट मांगी है। केंद्र सरकार ने 2009-10 में यह योजना शुरू की थी। यूपी के कुछ जिलों में 2011-12 और प्रयागराज में 2013-14 सत्र से यह योजना चालू हुई। इसके तहत लखनऊ, कानपुर नगर, औरैया, गौतमबुद्धनगर और गाजियाबाद को छोड़कर 49921 लोक शिक्षा केंद्रों पर दो-दो हजार रुपये प्रतिमाह मानदेय पर 99482 शिक्षा प्रेरक संविदा पर तैनात किए गए थे। हालांकि 31 मार्च 2018 को योजना बंद कर दी गयी थी.
38 माह का मानदेय भी नहीं
कई जिलों में शिक्षा प्रेरकों को अगस्त 2014 से मार्च 2018 तक 43 महीने में भी नहीं मिला से एक महीने का मानदेय भी नही मिलको को 38 महीने का मानदेय नहीं मिला था। शिक्षा प्रेरकों से बीएलओ से लेकर हाउसहोल्ड सर्वे और अन्य सरकारी योजनाओं में काम भी लिया गया।