कांग्रेस और कुछ दूसरे राजनीतिक दलों की तरफ से कई राज्यों में पुरानी पेंशन स्कीम (ओपीएस) को लागू करने के एलान को नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष अरविंद पानगढ़िया अनैतिक मानते हैं। उनका कहना है कि राजनीतिक दलों की तरफ से चुनाव से पहले एक बार लागू होने वाले फ्रीबीज (मुफ्त की योजनाएं- रेवड़ियों) की घोषणा की बात तो समझी जा सकती है और इससे कोई बड़ा घाटा भी नहीं है। हालांकि पुरानी पेंशन स्कीम जैसी योजना को लागू करना आने वाली पीढ़ी पर बड़ा बोझ डालना है। दैनिक जागरण के साथ एक विशेष बातचीत में पानगढ़िया ने यह भी कहा कि भारत का कोई भी एक राज्य ऐसा नहीं है कि पुरानी पेंशन स्कीम के बोझ को वहन कर सके।
पानगढ़िया से जब यह पूछा गया कि वह इस सामाजिक सुरक्षा स्कीम को फिर से लागू करने को अनैतिक क्यों कह रहे हैं तो उनका जवाब था कि जो राजनीतिक दल इसका वादा कर रहे हैं उनको मालूम है कि इससे जो बोझ पड़ेगा उसका भुगतान उनको नहीं करना है बल्कि कई वर्षों बाद की सरकारों को करना है। एनपीएस वर्ष, 2004 से लागू है और जिन कर्मचारियों ने इसे स्वीकार किया है उन्हें औसतन वर्ष 2034 से एनपीएस के जरिये पेंशन का भुगतान शुरू होगा। यानी औपीएस लागू करने का बोझ वर्ष 2034 में जो सरकार आएगी, उस पर इसका दायित्व होगा। इस वादे से चुनाव जीतने वाली सरकार को अगले पांच वर्षों तक बोझ नहीं उठाना है। मैं इस तरह का वादा करना और इसे लागू करना दोनो को अनैतिक मानता हूं।
कोई भी राज्य नहीं उठा सकेगा यह बोझ
पानगढ़िया ने कहा कि अगले एक दशक तक देश और राज्यों की आर्थिक प्रगति अच्छी होने के बावजूद मुझे नहीं लगता कि कोई भी राज्य इस तरह के दायित्व को वहन कर सकता है। आर्थिक प्रगति से राज्यों को जो राजस्व मिलेगा, उससे उनको ढांचागत सुविधाओं को बेहतर बनाना होगा। गरीबों के उत्थान पर काम करने पर ध्यान देना होगा। ब्राजील
अरविंद पानगढ़िया
एक बड़ा उदाहरण है। वहां कुल राजस्व का 12-13 प्रतिशत पेंशन में चला जाता।