हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने राज्य सरकार को बड़ा झटका देते हुए निकाय चुनावों के लिए जारी 5 दिसम्बर 2022 के ड्राफ्ट नोटिफिकेशन को रद्द कर दिया है। इस ड्राफ्ट नोटिफिकेशन के जरिए सरकार ने एससी, एसटी व ओबीसी के लिए आरक्षण प्रस्तावित किया था।
न्यायालय ने अपने 87 पेज के निर्णय में यह भी कहा कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्देशित ट्रिपल टेस्ट के बगैर ओबीसी आरक्षण नहीं लागू किया जाएगा। कोर्ट ने एससी/एसटी वर्ग को छोड़कर बाकी सभी सीटों को सामान्य सीटों के तौर पर अधिसूचित करने का भी आदेश दिया है। हालांकि न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया है कि महिला आरक्षण संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार दिए जाएं। न्यायालय ने सरकार को निकाय चुनावों की अधिसूचना तत्काल जारी करने का आदेश दिया है। यह भी टिप्पणी की है कि यह संवैधानिक अधिदेश है कि वर्तमान निकायों के कार्यकाल समाप्त होने तक चुनाव करा लिए जाएं। यह निर्णय न्यायमूर्ति देवेन्द्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति सौरभ लवानिया की खंडपीठ ने वैभव पांडेय समेत कुल 93 याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करते हुए पारित किया। न्यायालय ने 12 दिसम्बर 2022 के उस शासनादेश को भी निरस्त कर दिया है जिसमें निकायों का कार्यकाल समाप्त होने पर इनके बैंक अकाउंट प्रशासकीय अधिकारियों के नियंत्रण में दे दिए गए थे। न्यायालय ने कहा कि के कृष्ण मूर्ति व विकास किशनराव गवली मामलों में दिए ट्रिपल टेस्ट फार्मूले को अपनाए बगैर ओबीसी आरक्षण नहीं दिया जा सकता।
तीन निर्णय जिनका अनुपालन न करना सरकार को भारी पड़ा
2010 में सर्वोच्च न्यायालय ने के. कृष्णमूर्ति व अन्य बनाम भारत सरकार व अन्य मामले में पहली बार निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण के संदर्भ में ट्रिपल टेस्ट लागू किए जाने की बात कही। वहीं, विकास किशन राव गवाली मामले में महाराष्ट्र में होने वाले निकाय चुनावों में बिना ट्रिपल टेस्ट फार्मूला लागू किए ओबीसी आरक्षण किो चुनौती दी गई थी। इस मामले में तो सुप्रीम कोर्ट ने पिछड़ों के लिए आरक्षित सीटों के चुनाव परिणाम को ही रद्द कर दिया था। इसी प्रकार सुरेश महाजन मामला मध्य प्रदेश निकाय चुनावों से सम्बंधित है। इसमें भी कोर्ट ने एससी-एसटी सीटों के अतिरिक्त सीटों को सामान्य अधिसूचित कर चुनाव कराने के आदेश दिए थे।
क्या है ट्रिपल टेस्ट
शीर्ष अदालत के निर्णयों के तहत ट्रिपल टेस्ट में स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण दिए जाने के लिए एक समर्पित आयोग का गठन किया जाता है जो निकायों में पिछड़ेपन की प्रकृति व प्रभाव की जांच करता है, तत्पश्चात ओबीसी के लिए आरक्षित सीटों को प्रस्तावित किया जाता है तथा यह सुनिश्चित करना होता है कि एससी, एसटी व ओबीसी आरक्षण 50 से अधिक न होने पाए।