पति की मौत के बाद गोद ली गई संतान को नहीं मिलेगी पेंशन, सुप्रीम कोर्ट ने दिया अहम फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने पेंशन के मामले में बड़ा फैसला दिया है। कोर्ट ने कहा है कि सरकारी कर्मचारी के निधन के बाद गोद लिया गया बच्चा पेंशन का हकदार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा है। शीर्ष अदालत ने अपीलकर्ता की याचिका खारिज कर दी है
सुप्रीम कोर्ट ने पारिवारिक पेंशन को लेकर बड़ा फैसला दिया है। देश की शीर्ष अदालत ने कहा है कि सरकारी कर्मचारी की मौत के बाद पत्नी ने अगर बच्चा गोद लिया है तो वो पारिवारिक पेंशन का हकदरा नहीं होगा। इस दौरान कोर्ट ने हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण पोषण अधिनियम (Hindu Adoption and Maintenance Act – HAMA), 1956 का भी जिक्र किया। इसमें कहा गया है कि इस एक्ट के 8 और 12 के तहत एक हिंदू महिला, जो नाबालिग या मानसिक रूप से अस्वस्थ नहीं है तो वो एक बेटा या बेटी को गोद ले सकती है।
कोर्ट ने आगे ये भी कहा है कि एक्ट में ये भी प्रावधान है कि हिंदू महिला अपने पति या बिना सहमति के लड़का या लड़की को गोद नहीं ले सकती है। हालांकि हिंदू विधवा, तलाकशुदा महिला या मानसिक रूप से विक्षिप्त पति के संबंध में ऐसी कोई शर्त लागू नहीं होती है।
सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की याचिका
जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस बीवी नागरत्ना की बेंच ने 30 नवंबर, 2015 के बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखा है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) नियम 54 (14) (B) और 1972 के (CCS) पेंशन नियम के तहत गोद लिया गया बच्चा पारिवारिक पेंशन का हकदार नहीं होगा। बेंच ने कहा कि यह जरूरी है कि पारिवारिक पेंशन के लाभ का दायरा सरकारी कर्मचारी को अपनी जिंदगी में सिर्फ वैध रूप से गोद लिए गए बेटों और बेटियों तक सीमित हो। कर्मचारी के मौत के बाद जीवित पति या पत्नी के गोद लेने के मामले में विस्तार नहीं करना चाहिए।
कर्मचारी का परिवार से संबंध जरूरी
बेंच ने ये भी कहा है कि सरकारी कर्मचारी के निधन के बाद पैदा हुए बच्चे और उसके निधन के बाद गोद लिए बच्चे के अधिकार पूरी तरह से अलग हैं। बेंच का कहना है कि सरकारी कर्मचारी की मौत के बाद गोद लिए बच्चे के साथ उसका कोई संबंध नहीं है। कोर्ट ने कहा कि परिवार की परिभाषा का मतलब ये है कि उस कर्मचारी का अपनी जिंदगी में पारिवारिक संबंध रहा होगा। इसका किसी अन्य तरीके से अर्थ निकालना पेंशने देने के मामले में प्रावधान का दुरुपयोग है