इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उप्र अधीनस्थ शिक्षा टीजीटी सेवा नियमावली के नियम 8 (6) को वैध करार दिया है और कहा कि यह रेग्यूलेशन का विरोधाभासी नहीं है। यह अनुच्छेद 309 के अंतर्गत मिले नियम बनाने के अधिकार का अतिक्रमण नहीं करता। इस नियम में राजकीय इंटर स्कूल एवं कॉलेजों में सहायक अध्यापक हिंदी की भर्ती योग्यता संस्कृत के साथ स्नातक व बीएड डिग्री के अलावा इंटर में संस्कृत की अनिवार्यता निर्धारित की गई है। इंटर में संस्कृत की अनिवार्यता की वैधता को चुनौती दी गई थी।
कहा गया था कि संस्कृत के साथ स्नातक व बीएडधारक याचियों को भर्ती में शामिल होने का मौका दिया जाए। जिसे कोर्ट ने नहीं माना और याचिकाएं खारिज कर दीं। यह आदेश न्यायमूर्ति एसपी केसरवानी तथा न्यायमूर्ति राजेन्द्र कुमार की खंडपीठ ने बालकृष्ण व 94 अन्य सहित सात याचिकाओं की एक साथ सुनवाई करते हुए दिया है। कोर्ट ने कहा किसी नियम, कानून की अतार्किकता या मनमानापन जब तक चिन्हित नही होता, कोर्ट उसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती।
कोर्ट ने कहा अधीनस्थ विधायन की वैधता को दो आधारों पर चुनौती दी जा सकती है। पहला नियम बनाने की सक्षमता न हो। दूसरा उससे मूल अधिकारों का उल्लंघन होता हो। तीसरा कोई आधार नहीं जिससे नियम बनाने की सक्षमता को अवैध ठहराया जाए। कोर्ट ने कहा कि विधायिका लोगों की इच्छा का प्रतिनिधित्व करती है। समाज की आज्ञा का पालन करती है। अपने अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण नहीं करती और लोगों की जरूरतों के अनुसार काम करती है । ऐसे मामलों में आम तौर पर इसमें हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता।
कोर्ट ने कहा एक आधार यह भी है कि स्वयं को मिले अधिकार का अतिक्रमण किए बगैर नियम बनाएं, अधिकार सीमा लांघें नहीं। कोर्ट ने कहा शिक्षा की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए सरकार को योग्यता मानक तय करने का अधिकार है। हिंदी में स्नातक व बीएड डिग्री के साथ इंटर में संस्कृत की अनिवार्यता रखना गलत नहीं है