इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि 18500 पदों के सहायक अध्यापक भर्ती में चयनित जिन अध्यापकों को मेरिट के आधार पर उनकी पसंद के जिले में दोबारा नियुक्ति दी गई है, उनकी वरिष्ठता नई नियुक्ति पर शून्य नहीं होगी। कोर्ट ने कहा कि नई नियुक्ति पर भी अध्यापकों की वरिष्ठता उनकी मूल नियुक्ति की तिथि से ही जोड़ी जाएगी। यह आदेश न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव ने दिनेश सिंह व अन्य सैकड़ों अभ्यर्थियों की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है।
याचियों के अधिवक्ता ओपीएस राठौर का कहना था कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फरवरी 2022 में ऐसे सहायक अध्यापकों को उनकी पसंद का जिला आवंटित करने का निर्देश दिया था जो अपनी पसंद का जिला नहीं पा सके थे। इस आदेश के अनुपालन में बेसिक शिक्षा विभाग ने पिछड़ा वर्ग के उन मेधावी अभ्यर्थियों जिनका चयन सामान्य श्रेणी में हुआ था तथा मेरिट में अन्य अभ्यर्थियों से ऊपर थे, उन्हें उनकी प्राथमिकता वाला जिला आवंटित कर दिया। इसमें यह शर्त रखी गई कि पसंद के जिले में नियुक्ति मिलने पर उसकी वरिष्ठता शून्य कर दी जाएगी।
और वह नए जिले की वरिष्ठता सूची में सबसे नीचे होंगे। सहायक अध्यापकों से इस आशय का हलफनामा भी ले लिया गया।
परिषद के इस आदेश को याचिका के माध्यम से चुनौती दी गई। कहा गया कि अभ्यर्थियों को उनकी प्राथमिकता का जिला प्रथम काउंसिलिंग के समय ही आवंटित किया जाना चाहिए था लेकिन बेसिक शिक्षा परिषद की गलत नीति के कारण पहली काउंसिलिंग में उन्हें पसंद का जिला नहीं मिल सका। कोर्ट के आदेश पर बाद में उन्हें उनकी पसंद के जिले में तैनाती दी गई इसलिए वरिष्ठता शून्य करने का निर्णय गलत है। कोर्ट ने परिषद के आदेश को रद्द करते हुए कहा कि प्राथमिकता वाला जिला पाने वाले सहायक अध्यापकों को की वरिष्ठता उनकी नियुक्ति की तिथि से मानी जाएगी और नई नियुक्ति के समय उनकी वरिष्ठता शून्य नहीं की जाएगी। कोर्ट के इस आदेश से प्रदेश में कार्यरत लगभग चार हजार सहायक अध्यापकों को वरिष्ठता का लाभ मिल सकेगा।