इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सहायक अभियोजन अधिकारी (एपीओ) पद की भर्ती में आपराधिक केस के खुलासे के साथ आवेदन देने के बावजूद अभ्यर्थिता निरस्त करने की वैधानिकता पर पक्षों की बहस के बाद अपना फैसला सुरक्षित कर लिया है। सरकार की ओर से कहा गया कि अभ्यर्थिता निरस्त होने के दूसरे दिन बरी करने का आदेश हुआ, किंतु याची सम्मानजनक ढंग से बरी नहीं हुआ है। जबकि याची का कहना है कि उसने अपराध का खुलासा किया और बरी भी हो गया है।
चयनित होने के बाद उसकी अभ्यर्थिता निरस्त करना ग़लत है। यह आदेश न्यायमूर्ति एसपी केसरवानी तथा न्यायमूर्ति एमएएच इदरीसी की खंडपीठ ने भूविज्ञान मंत्रालय, भारत सरकार के मेट्योलाजी के महानिदेशक कार्यालय में अपर डिविजनल क्लर्क ललित कुमार की विशेष अपील पर दिया है।
याची ने सहायक अभियोजन अधिकारी भर्ती 2015 में अर्जी दी। परीक्षा, साक्षात्कार में सफल होने पर उप्र लोक सेवा आयोग से 21 अगस्त 2017 को उसे चयनित कर लिया। बाद में कोर्ट ने उसे आपराधिक मामले में एक फरवरी 2019 को बरी भी कर दिया। नियुक्ति की मांग में दाखिल अर्जी छह नवंबर 2021 को यह कहते हुए निरस्त कर दी गई कि ससम्मान बरी नहीं किया गया है। एकलपीठ ने याचिका खारिज कर दी, जिसे अपील में चुनौती दी गई।