प्रयागराज प्रदेश सरकार की ओर से पहले दाखिल विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) और अब पुनर्विचार (रिव्यू) याचिका सुप्रीम कोर्ट में खारिज होने के बाद विशिष्ट बीटीसी 2004 बैच में प्रशिक्षण के बावजूद बेरोजगारों को स्टाइपेंड (भत्ता) मिलने का रास्ता साफ हो गया है। इस आदेश से तकरीबन 500 बेरोजगारों को 2.75-2.75 लाख रुपये बकाया मानदेय मिलना तय हो गया है।
विशिष्ट बीटीसी 2004 बैच के प्रशिक्षण के लिए शासनादेश में प्रशिक्षुओं को सहायक अध्यापक के पद पर नियुक्ति मिलने तक प्रतिमाह 2500 रुपये मानदेय देने का प्रावधान था। 2004 बैच में दूरस्थ शिक्षा विधि से बीएड करने वाले सैकड़ों अभ्यर्थियों ने भी प्रवेश लिया था। लेकिन प्रदेश सरकार ने प्राथमिक स्कूलों में सहायक अध्यापक पद पर नियुक्ति के लिए इस डिग्री को मान्य करने से इनकार कर दिया था।
इसके खिलाफ दूरस्थ विधि से बीएड प्रशिक्षुओं की याचिका पर हाईकोर्ट ने 26 अक्तूबर 2007 में उन्हें नियुक्ति के लिए अर्ह माना था। इस फैसले के खिलाफ राज्य सरकार की एसएलपी सुप्रीम कोर्ट ने 26 अप्रैल 2013 को खारिज कर दी थी जिसके बाद सितंबर 2013 से इनका छह माह का प्रशिक्षण शुरू हुआ।
नौकरी नहीं मिली तो भत्ते की शुरू हुई लड़ाई: इन अभ्यर्थियों ने विशिष्ट बीटीसी 2004 के शासनादेश के अनुसार नियुक्ति होने तक 2500 रुपये प्रतिमाह मानदेय देने के लिए हाईकोर्ट में याचिका की जिस पर कोर्ट ने 18 फरवरी 2020 को भत्ता देने का आदेश राज्य सरकार को दिया।
2.75-2.75 लाख बकायाः हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सरकार की एसएलपी को सुप्रीम कोर्ट ने 11 जुलाई 2022 को खारिज कर दी थी। सरकार ने पुनर्विचार याचिका की जो 31 जनवरी को खारिज हो गई। अभ्यर्थियों वंदना सिंह, श्रीनाथ पांडेय, विजय मिश्रा, सतपाल सिंह, निशा मिश्रा व नरेंद्र प्रताप सिंह के अनुसार सितंबर 2013 से लगभग 2.75-2.75 लाख बकाया मानदेय बनता है।
कानूनी लड़ाई के बीच लागू हो गया आरटीई
सितंबर 2014 में प्रशिक्षण पूरा हुआ लेकिन इस बीच जुलाई 2011 में उत्तर प्रदेश में आरटीई लागू होने से सहायक अध्यापक पद पर नियुक्ति के लिए टीईटी अनिवार्य हो गया, जबकि विशिष्ट बीटीसी 2004 के प्रशिक्षण में टीईटी की कोई बाध्यता नहीं थी। प्रशिक्षण पूर्ण कर चुके जिन अभ्यर्थियों ने टीईटी भी कर ली उन्हें तो सरकारी टीचरी मिल गई लेकिन तकरीबन 500 प्रशिक्षु ऐसे रह गए जो टीईटी नहीं कर सके।