केंद्र सरकार ने मंगलवार को दिल्ली उच्च न्यायालय को बताया कि कोरोना महामारी के दौरान गठित पीएम केयर्स फंड पर उसका या किसी राज्य सरकार का नियंत्रण नहीं है। साथ ही कहा, इस कोष का गठन संविधान या संसदीय कानून के तहत नहीं किया गया है। यह एक स्वतंत्र चैरिटेबल ट्रस्ट है।
मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ के समक्ष प्रधानमंत्री कार्यालय में तैनात अवर सचिव प्रदीप कुमार श्रीवास्तव ने विस्तृत हलफनामे में यह जानकारी दी। पीएम केयर्स फंड को ‘राज्य घोषित’ करने और इसे सूचना के अधिकार कानून (आरटीआई) के दायरे में लाने की मांग को लेकर समय्क गंगवाल द्वारा दाखिल याचिकाओं के जवाब में यह हलफनामा दाखिल किया गया है।
सरकार से जानकारी मिलने के बाद हाईकोर्ट ने मामले में कानूनी पहलुओं पर बहस करने के लिए सुनवाई स्थगित कर दी। साथ ही, सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को बहस में शामिल होने के लिए अपना समय बताने को कहा। इस मामले में जुलाई, 2022 में सरकार ने सिर्फ दो पेज का जवाब दाखिल किया था। इस पर कोर्ट ने कहा था कि यह गंभीर मसला है, ऐसे में सरकार विस्तृत हलफनामा दाखिल करे।
किसी तरह की सरकारी सहायता नहीं दी जाती
सरकार के हलफनामे के अनुसार, पीएम केयर्स फंड स्वैच्छिक दान पर आधारित है और इसे कोई सरकारी मदद नहीं दी जाती। यह भी बताया गया कि यह फंड सार्वजनिक प्राधिकरण नहीं है। इसमें जो भी दान दिया जाता है, वह सरकार के संचित कोष में नहीं जाता है।
किसी तरह की सरकारी सहायता नहीं दी जाती
हलफनामे के अनुसार, पीएम केयर्स फंड स्वैच्छिक दान पर आधारित है और इसे कोई सरकारी मदद नहीं दी जाती। इसमें यह भी बताया गया कि यह कोष सरकार के बजटीय स्रोतों या सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की बैलेंस शीट से मिलने वाले योगदान को स्वीकार नहीं करता है।
आरटीआई अधिनियम के दायरे में नहीं ला सकते
केंद्र ने न्यायालय को बताया कि इसे आरटीआई अधिनियम के दायरे में नहीं लाया जा सकता। हालांकि, सरकार ने कहा कि पीएम केयर्स फंड के कामकाज में पारदर्शिता के लिए महानियंत्रक लेखा परीक्षक के पैनल में शामिल चार्टेड एकाउंटेंट से इसका ऑडिट कराया जाता है।