लखनऊ। सरकारी कर्मचारियों में पुरानी पेंशन एक बड़ा मुद्दा है। इसे लेकर समय-समय पर कर्मचारियों की नाराजगी भी सामने आती रहती है। लखनऊ विश्वविद्यालय ने सरकार के लिए मुश्किल का सबब बने इस सवाल का हल निकालने का दावा किया है। वाणिज्य संकाय के शोध के अनुसार, कर्मचारियों को पुरानी पेंशन भी मिल पाएगी और सरकार पर राजस्व खर्च का अतिरिक्त बोझ भी नहीं आएगा।
शोधपत्र को तैयार करने वाले वाणिज्य विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. सोमेश शुक्ल ने बताया कि नई पेंशन स्कीम में भी वही नियम हैं जो पुरानी पेंशन स्कीम में थे। इसमें भी कर्मचारी और सरकार बराबर का अंशदान करते हैं। पुरानी पेंशन स्कीम में भी वही व्यवस्था है। तो फिर कर्मचारी को पुरानी पेंशन मिलनी चाहिए। उन्होंने बताया कि शोधपत्र में उन सभी जरूरी तथ्यों पर विचार किया गया जिससे कि सरकार को घाटा न हो। प्रो. ने बताया कि शोध पत्र में कर्मचारी का एक निश्चित वेतनमान लिया गया है। इसके साथ यह कहा गया है कि सरकार जो रकम शेयर बाजार में लगाती है। उसे वहां न लगाकर एलआईसी या डाकघरों में एनएससी जैसी स्कीम में लगाया लगाए। क्योंकि इन संस्थाओं की ब्याज दर ज्यादा होने के साथ फिक्स भी रहती है। ऐसे में जब कर्मचारी सेवानिवृत्त होगा तो एक अच्छी खासी रकम तैयार हो जाएगी।
इस तरह से हो सकता है समाधान
प्रो. सोमेश शुक्ल ने बताया कि अगर रिटायरमेंट के समय कर्मचारी की औसत सैलरी 50 हजार होती है। तो वह 30 साल की सेवा में 60 लाख का अंशदान करेगा। जबकि इतना ही अंशदान नियोक्ता का बनेगा। जिसका 90 फीसदी वह (सरकार) पीएफ के रूप में कर्मचारी के खाते में जमा कर दे और 10 प्रतिशत मेडिकल सुविधा के तौर जमा कर दे। इस तरह कर्मचारी को उसकी पेंशन के साथ ही चिकित्सीय सुविधा भी दी जा सकेगी। इससे सरकार पर कोई अतिरिक्त बोझ नहीं आएगा। कर्मचारी को सारे लाभ मिलने के साथ ही मूल वेतन की 50 फीसदी रकम पेंशन के तौर पर भुगतान भी की जा सकेगी।