रायबरेली। जिस तरह परिषदीय विद्यालयों को कॉपियों के लिए कोई बजट नहीं मिला और शिक्षकों को अपने वेतन से खर्च कराना पड़ा, उसी तरह अब रिपोर्ट कार्ड (परीक्षाफल) बनाने के लिए भी शिक्षकों को धनराशि लगानी पड़ेगी। इसके लिए भी बजट नहीं आया है। परीक्षाफल कैसे बनेगा, इसके दिशानिर्देश भी नहीं मिले हैं। रिजल्ट कार्ड छपवाने का भुगतान कैसे होगा, शिक्षक इसे लेकर परेशान हैं। शुक्रवार को परीक्षा खत्म होने के बाद अब मूल्यांकन की तैयारी हो रही है।
जिले में कक्षा एक से आठ तक के करीब तीन लाख बच्चे हैं, जिनकी वार्षिक परीक्षा 20 से 24 मार्च तक कराई गई। परीक्षा के लिए जिला मुख्यालय से प्रश्नपत्रों के पैकेट विद्यालयों को भेजे गए थे, जबकि कॉपियों की व्यवस्था विद्यालयों को करनी पड़ी। बजट न होने से कहीं कंपोजिट ग्रांट की बची रकम से व्यवस्था हुई तो ज्यादातर स्कूलों में शिक्षकों ने अपने वेतन से कॉपियां खरीदकर परीक्षा कराई। अब मूल्यांकन कार्य होना है। जिसके बाद परीक्षा फल तैयार कर 31 मार्च को रिपोर्ट कार्ड बांटना है। इसका मानक क्या होगा, इसका निर्देश नहीं मिला है। खंड शिक्षा अधिकारी (मुख्यालय) वीरेंद्र कुमार कनौजिया का कहना है कि रिपोर्ट कार्ड के लिए अभी बजट नहीं आया है।
लगभग 35 हजार बच्चों ने नहीं दी वार्षिक परीक्षा
जिले के लगभग 35 हजार बच्चों ने वार्षिक परीक्षा में भाग नहीं लिया। इन बच्चों को भी पास करके कक्षोन्नति दी जाएगी। विभाग के पास परीक्षा में अनुपस्थित बच्चों का कोई आंकड़ा नहीं है, लेकिन पांच दिन चली परीक्षा में खंड शिक्षा अधिकारियों और जिला समन्वयकों ने निरीक्षण किया तो ज्यादातर स्कूलों में बच्चों की अनुपस्थिति 10 से 15 फीसदी रही।
अंग्रेजी के पेपर ने उलझाया
खीरों। परिषदीय विद्यालयों की परीक्षा में आए प्रश्नपत्रों के सवालों ने बच्चों को खूब उलझाया और परेशान किया। इन सवालों को देखकर शिक्षक भी चकराए। विकास क्षेत्र के एक शिक्षक ने बताया कि हिंदी माध्यम के प्रश्नपत्र भले ही आसान रहे हों, लेकिन अंग्रेजी माध्यम के प्रश्नपत्रों में सवाल समझ में नहीं आए। कक्षा तीन के एक प्रश्नपत्र में पाठ्यक्रम से इतर सवाल पूछे गए। मौर्य वंश और गौतम बुद्ध से जुड़े कठिन सवालों ने परेशान किया। (संवाद)